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स्त्रियों के हिस्से का सुख

striyon ke hisse ka sukh

शालिनी सिंह

शालिनी सिंह

स्त्रियों के हिस्से का सुख

शालिनी सिंह

और अधिकशालिनी सिंह

    जबकि बरसों बाद

    स्त्रियों के हिस्से आया है

    पुरुषों के संग रहने का सुख

    तो फिर आँकड़े क्यूँ कह रहे हैं

    कि स्त्रियाँ सबसे अधिक उदास इन दिनों ही है

    कि ये कौन शिकायतें दर्ज करा रहा

    बंद घरों में हिंसा की

    कि घरेलू कार्यों में सिद्ध स्त्रियों के

    कौन से कार्यों से पहुँच रही होगी

    चोट तुम्हें

    कि बरसों से सधे हाथों से

    चूक होने की संभावना कम ही है

    फिर ऐसा क्या जो

    तुम्हारे माथे पर बल ला देता हो

    और तुम्हारा क्रोध पर क़ाबू रह पाता हो

    बिफर पड़ते होंगे तुम

    और आग बबूला हो

    उठा लेते होंगे हाथ

    कि उधेड़ देते होंगे बखिया

    स्त्री के मन पर कढ़े कँगूरी की

    कि जाता होगा तुम्हें

    इत्मिनान उसकी रुँधती हुई

    आवाज़ को सुनकर

    इससे इतर कुछ चुप स्त्रियाँ भी हैं

    जिन्होंने नहीं लिखाई रपट

    जिनके हिस्से ऐसे पुरुष आए

    जिन्होंने चुप की मार से

    स्त्रियों के पंख कतर डाले

    पर फिर भी वे चुप स्त्रियाँ

    अपनी क्षमता से अधिक

    श्रम साधती रहीं

    और नहीं कर पाईं हौसला

    घर की चहारदीवारी लाँघने का

    हालाँकि उनके शरीर पर कोई निशान नहीं थे

    पर मन पर पड़े घाव के रिसने का दर्द

    उनकी आँखों में देखा जा सकता है

    पुरुष यह कैसा पुरुषत्व है तुम्हारा

    कि जो स्त्री के प्रेम के बदले करते हो हर बार

    उसे परास्त पीड़ा पहुँचाकर

    और स्त्रियाँ हैं कि

    हर शिनाख़्त के बाद भी

    बचा लेती हैं अपने भीतर प्रेम का टुकड़ा

    इस आस के साथ

    कि वक़्त का पहिया एक जगह ठहरता नहीं

    और सदियों-सदियों से इसी आस के साथ

    सलीब पर ढोती रही हैं अपनी देह

    इतिहास में कहीं दर्ज नहीं

    इन स्त्रियों के टूटे स्वाभिमान का लेखा-जोखा

    दर्ज हैं आँसू

    कि जिनकी नमी

    धुँधला कर दे

    इतिहास में लिखे अक्षरों को!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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