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स्त्रियाँ रसायन से चलती हैं

striyan rasayan se chalti hain

नेहल शाह

नेहल शाह

स्त्रियाँ रसायन से चलती हैं

नेहल शाह

और अधिकनेहल शाह

    स्त्रियाँ रसायन से चलती हैं

    एक जैसा नहीं रहता उनका मन

    और इसलिए

    हमेशा हँस नहीं सकती।

    उनके भीतर के स्टार्च रसायन से,

    जब भी कोई भाव मिलता है,

    वह भाव

    और गाढ़ा हो जाता है।

    जिसे तरल करने के लिए कई लीटर

    पानी डालना होता है,

    उनकी भावनाओं पर।

    संबंध

    पानी और स्त्री का

    प्रगाढ़ है।

    वे स्त्री को

    पानी से भरा देखना चाहते हैं।

    इसलिए

    जितना पानी है,

    उतने घड़े हैं

    स्त्रियों के पास

    सहेजने के लिए।

    मेरी माँ कहती है,

    स्त्रियाँ अपने बच्चे को पोसते हुए,

    हज़ारों घड़े दूध पिला देती हैं।

    (मुझे नहीं लगता

    कि किसी के पास

    इसका कोई हिसाब है)

    और कहती हैं

    स्त्रियाँ बे हिसाब देती हैं,

    बिना कुछ वापस लिए।

    मैंने पाया कि

    इस उदारता में वे

    सबसे अधिक अपना समय

    गँवाती हैं।

    शायद इसलिए घड़ी के मायने

    उनके लिए अलग हैं।

    वे घड़ी में या तो

    उसके डायल का आकार देखती हैं,

    या उसके पट्टे की मैचिंग,

    समय से उनका अधिक सरोकार नहीं

    वे उसकी पाबंदी बर्दाश्त नहीं करतीं।

    इसके विपरीत,

    स्त्रियों की देह

    अनुशासित होती है।

    अनुशासित देह और स्वच्छंदी मन,

    शायद संघर्षपूर्ण जीवन के लिए अपर्याप्त थे,

    इसलिए उन्हें गाढ़े दागों की काया के साथ,

    बेदाग़ जीवन जीने का फ़रमान मिला।

    और स्त्रियाँ जीती रहीं हैं

    इस क़रीने से

    कि कोई दाग लगे कभी

    उनके कपड़ो पर,

    उनकी अस्मत पर।

    जबकि उन्हें होना चाहिए,

    आज़ादी

    बड़े-बड़े धब्बों के साथ,

    शान से जीने की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहल शाह
    • प्रकाशन : पहली बार

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