स्त्रियाँ बचा लेती हैं
striyan bacha leti hain
स्त्रियाँ अक्सर बचा लेती हैं एक मुट्ठी अनाज
कहती हैं इससे बरकत रहती है
सहेज रखती हैं नए-पुराने कपड़े
जाने कब कौन से अवसर पर काम आ जाएँ
गाहे-बगाहे बचाती हैं
ज़्यादा घी, थोड़ा तेल
ज़रा-सी शक्कर और कुछ छँटाक मसाले
कुछ ऐसे कि न तो भोजन से स्वाद कम हो
और न ही जीवन से मिठास कम हो
बचा रखती है एक टूटे-तड़के फ़्रेम में
एक पुरानी तस्वीर :
ये तब की बात है जब बबुआ इत्ता-सा था...
पुराने बर्तन
कमज़ोर कुर्सियाँ,
वक़्त-बेवक़्त के लिए दवाइयाँ
सुई-धागा, बिखरे रबड़ बैंड्स
और यहाँ तक कि माचिस की एक तीली
इनके छोटे से भंडार घर में
हर भूली-बिसरी चीज़ के लिए जगह है
और तो और बचा लेती हैं
आइने पर चिपकी बिंदी
नींद की एक झपकी
आँख की कोर में अटका एक आँसू
तब भी... जब नहीं बचा पातीं
अपने लिए प्यार और इज़्ज़त के साथ-साथ
दो घड़ी का सुकून
- रचनाकार : पूनम सोनछात्रा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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