तुमसे इतना प्यार करने के पश्चात् अब ज़रूरी नहीं रह गया है
कि मैं नफ़रत करना भी सीखूँ और
सधी उँगलियों की थाप तबले पर पड़ती रहे।
प्यार मेरे मुँह का ज़ायक़ा बदलकर
मुझे छोटा नहीं कर सकता
मेरे ऊपर का आकाश फैलता ही जाता है और
कई रंग हैं जो मुझ पर बिखर जाते हैं : मैंने
बदलते सुरों की तरह
इन रंगों को पहचान लिया है और यह पहचान
मेरे रक्त का हिस्सा बन गई है।
नि:शब्द पहचान तुम्हारे रक्त में अब भी गूँजती होगी
निश्चित ही अँधेरे कोनों में तुम्हें चमकती हुई रौशनी दिखाई देगी
और तुम्हारा हाथ
अपरिमित विश्वास में डूबे हुए कंधे को
सहलाने आगे बढ़ेगा : अब
यह आवश्यकता भी नहीं रही है
कि वह कंधा मात्र मेरी
ही देह का हिस्सा हो : वह कंधा कहीं भी हो,
किसी का भी हो; आदमी या जानवर का : बार-बार
मेरा कंधा बन जाएगा और उसकी आँखें मेरी
आँखें : चाहे
उन आँखों की चमक किसी भी प्रदेश की हो : कोई भी
शहर, नाम, जाँघ या हाथ, मेरी आँखों की
चमक के अतिरिक्त कुछ नहीं दे पाएगा तुम्हें!
तुम
मुझे ही ढूँढ़ने के अतिरेक में भुतहे खंडहर में
शताब्दियों की छुपी पांडुलिपियाँ खोजने के लिए सीढ़ियाँ उतर
जाओगे : मुझे देखने का मोह
तुम्हारी आँखों को हर चेहरे को पहचानने में व्यस्त रखेगा।
मुझे छूने का मोह, तुम्हें बाँधे रखेगा
अनंत शताब्दियों तक न समाप्त होने वाली जिजीविषा में :
मेरे भीतर से उठने वाले शब्द
तुम्हारी शिराओं में अनाहत नाद बन कर गूँजेंगे :
तुम्हारी जिज्ञासाओं के तमाम बिंदु बार-बार
आप्लावित होकर ढूँढ़ेंगे मुझे पहाड़ों से उतरते सफ़ेद झरनों में।
कोई मोड़
तुम्हें घुटने नहीं टेकने देगा : तुम्हारी
धमनियों का रक्त अनवरत घूमेगा
आकाश में, पाताल में :
कोई गर्माहट तुम्हारी पसलियों में
मेरा नाम लिए बिना शांत नहीं होगी।
हर चौराहा
हर चेहरा, हर श्वास, तुम्हारे लिए मुझे जानने का
प्रतीक बन जाएगा :
अब नहीं छूता है
कि वह चेहरा या श्वास कौन से जिस्म से फूटेगा :
कौन-सी
झाड़ी के पीछे से निकलेगा और
तुम्हारे चेहरे की चमक
बन जाएगा।
- पुस्तक : महाभिनिष्क्रमण (पृष्ठ 85)
- रचनाकार : मोना गुलाटी
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