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स्रोत

srot

पागल जल की कली खिलती है,

जैसे हवा का झोंका लगकर

वैसे ही तुम्हारी दृष्टि में जगते हैं

तरल कंपन मुझे देखकर

उन लहरियों में की अधीरता और तिलमिलाहट

मुग्ध तल-तृणों को हिला जाती है

गहरे में गहरे में हृदय के मूल में

कोई मूक स्त्रोत शुरू हो जाता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 575)
  • रचनाकार : गुणाकर देशपांडे
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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