...इस वर्ष फ़रवरी उनतीस की है
सत्ताईस दिन गुज़र चुके हैं
अभी दो दिन और हैं
और दो दिन और भी हो सकते थे
इन गुज़र गए सत्ताईस दिनों में
मैं प्रेम में बहता रहा हूँ
और इस अवधि में मैंने अविश्वसनीय हो चुके संवादों
और मृतप्राय संगीत को एक बार पुन: रचा है
और आवेग में वह सब कुछ भी किया है
जो प्रेम में युगों से होता आया है
इस माह में प्रदर्शित हुई फ़िल्में
मेरे प्रेम की दर्शक रही हैं
मैंने उन्हें बार-बार देखा है
बार-बार प्रेम करते हुए
हालाँकि मुझे अब उनके नाम याद नहीं
क्योंकि मैं बस देखता और प्रेम करता हूँ
बग़ैर इसे कोई नाम दिए हुए
एक नितांत शीर्षकहीन और विरल स्थानीयता में ध्वस्त होते हुए
मैं पाता हूँ कि दख़ल इधर काफ़ी बढ़ा है मेरे अंतरंग में
वे अब उन सारी जगहों पर मौजूद हैं
जहाँ मैं प्रेम कर सकता हूँ
लिहाज़ा मैं गुलाबों से बचता हूँ
कि कहीं घेर न लिया जाऊँ
एक अजीब-सी पोशाक में
इंतहाई सख़्त और गर्म रास्तों पर चलते हुए
मैं उसे याद करता हूँ
और मुसव्विर मुझे उकेरा करते हैं
और वह मुझे देखती और प्रेम करती है
बग़ैर इसे कोई नाम दिए हुए
देखने और प्रेम करने की संभावनाएँ धीमे-धीमे
समानार्थी शीर्षकों के व्यापक में विलीन होती जा रही हैं
वे अब उन सारी जगहों पर मौजूद हैं
जहाँ वह मुझे पुकार सकती है
अभी रास्ते और सख़्त और गर्म होंगे
सूर्य की अनंत यातनाएँ सहते-सहते
बारिशें अतीत की तरह हो जाएँगी
और मैं उन्हें छोड़ आऊँगा
संकरी गलियों से होकर
पार्कों की तरफ़ खुलने वाले रास्तों पर
जहाँ वे हो चुकने के बाद भी बची रहती हैं
एक हरे और उजलेपन में
मेरे पीछे लगातार कुछ बरसता रहा है...
फ़िलहाल यह फ़रवरी है
यह कविताएँ लिखने के लिए एक आदर्श महीना है
मैं आहिस्ता-आहिस्ता रच रहा हूँ
अभी दो दिन और फ़रवरी है
अभी दो दिन और कविताएँ हैं
अभी दो दिन और प्रेम है...
- रचनाकार : अविनाश मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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