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अकेली औरत

akeli aurat

प्रमिला शंकर

अन्य

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प्रमिला शंकर

अकेली औरत

प्रमिला शंकर

और अधिकप्रमिला शंकर

    अकेली औरत—

    को समझने के लिए

    आवश्यक है

    दृष्टि में परिवर्तन।

    वह कोई छूटा हुआ

    नाम नहीं,

    ना ही किसी की

    परछाईं—

    वह एक संपूर्ण काव्य है

    अपने आप में।

    उसे मत देखो

    उपेक्षित दृष्टि से

    क्योंकि वह

    उपेक्षा की नहीं,

    उत्सव की पात्र है।

    उसकी मुस्कान

    को शक की निगाह

    मत दो,

    उसके सजने-संवरने को

    कभी प्रदर्शन

    मत कहो।

    खिल-खिलाहट उसका

    अपराध नहीं है,

    जीवन का एक

    साहसी उत्तर है।

    उसका बोलना,

    बतियाना,नाचना,

    गाना—

    ये सब उसके

    अकेले होने के

    ख़िलाफ़

    सुंदर प्रतिशोध है

    समाज से।

    मत ठहराओ उसे

    उसके वैवाहिक संदर्भ में,

    सही या ग़लत

    या उसकी माँ बन पाने की कथित विफलता में।

    उसकी सोच में

    जो तानें हैं—

    वही तो हैं

    सृष्टि की तमाम

    संवेदनाओं के राग।

    अकेली औरत—

    मत सोचो उसे

    निंदनीय या अधूरी।

    उसकी आत्मा में

    इतिहास का बोध भी हैं

    और भविष्य की

    निर्माण-क्षमता भी।

    वह अकेली नहीं—

    वह पूर्ण है,

    वह पूरी पृथ्वी है,

    बस

    तुम्हारी दृष्टि अधूरी है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रमिला शंकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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