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सोनपुर लौटते हुए

sonpur lautte hue

अंचित

अंचित

सोनपुर लौटते हुए

अंचित

और अधिकअंचित

    जीवन चलता जाता है नदी और दीयरे के बीच,

    उजास रातों में तुमसे प्रेम करने की इच्छा रखते हुए

    कपास के खेतों के पास तैर रहा हूँ बेपरवाह और रात उजली है।

    मेरी बंगाली नाटकों की नायिका

    तुम बनलता सेन नहीं हो,

    तुम चेतना पारीक नहीं हो,

    कलकत्ता नहीं है कहीं भी पसरा हुआ आस-पास तुम्हारे।

    शांतिनिकेतन के जंगल अपनी गंध से अघाते हुए

    अब नहीं खींचते मुझे।

    फिर भी तुम याद आती हो,

    तुम्हारी आवाज़ों की वेवलेंथ अभी भी सेट है दिल में।

    तुमसे प्रेम करने की इच्छा रखते हुए बह रहा हूँ,

    जो थोड़ा बहाव है, क्षीण होता हुआ,

    जो थोड़ा पानी है, बाक़ी गंध भुला दे रहा है।

    और मेरा नाविक मुझे इसी प्रेम की दुहाई देते हुए लौट चलने को कहता है।

    रात ज़्यादा है, सोनपुर दूर है, सुबह काम पर जाना है।

    मैं प्रेम के योग्य नहीं हूँ,

    और घर इंतज़ार करता है।

    फिर भी खींच रही है नदी तुम्हारी ओर

    सारा पानी बह रहा है तुम्हारी ओर

    एक उजास रात है और जीवन चलता जा रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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