Font by Mehr Nastaliq Web

सोनचिरई

sonachiri

जितेंद्र श्रीवास्तव

और अधिकजितेंद्र श्रीवास्तव

    बहुत पुरानी कथा है

    एक भरे पूरे घर में

    एक लड़की थी सोनचिरई

    वह हँसती थी

    तो धूप होती थी

    फूल खिलते थे

    वह चलती थी

    तो बसंती हवा चलती थी

    जिधर निकल जाए

    लोगों की पलकें बिछ जाती थीं

    और जैसा कि हर क़िस्से में होता है

    उसका विवाह भी एक राजकुमार से हुआ

    राजकुमार उस पर जान लुटाता था

    उसके होंठ उसकी तारीफ़ में खुलते

    उसकी जिह्वा उसके प्रेम के सिवा

    और सारे स्वाद भूल गई थी

    उसकी आँखों में नींद

    और दिल में क़रार था

    और ऐसे ही दो-चार वर्ष बीत गए

    सोनचिरई की गोद भरी

    ननद को भतीजा

    सास को कुल का दीया

    पति को पुरुषत्व का पुरस्कार मिला

    ननद कहने लगी ब्रजवासिन

    सास कहने लगी बाँझ

    और जो रात-दिन समाया रहा उसमें साँसों की तरह

    उसने कहा तुम्हारी स्वर्ण देह किस काम की

    अच्छा हो तुम यह गृह छोड़ दो

    तुम्हारी परछाँई ठीक नहीं होगी हमारे कुल के लिए

    सोनचिरई बहुत रोई

    मिन्नतें कीं

    पर किसी ने सुनी

    आँसुओं बीच एक स्त्री

    घर के बाद

    भटकने लगी ब्रह्मांड में

    उसे जंगल मिला

    जंगल में बाघिनी मिली

    उसने उसे अपना दुःख सुनाया

    और निवेदन किया कि वह उसे खा ले

    बाघिनी ने कहा वहीं लौट जाओ जहाँ से आई हो

    मैं तुझे खाऊँगी

    वरना मैं भी बाँझ हो जाऊँगी

    सोनचिरई क्या करती!

    वहाँ से साँप की बांबी के पास पहुँची

    बांबी से नागिन निकली

    नागिन ने उसका दुःख सुना

    फिर कहा वहीं लौट जाओ जहाँ से आई हो

    जो मैं मुझे काट खाऊँगी

    तो बाँझ हो जाऊँगी

    सोनचिरई बहुत उदास हुई

    फिर क्या करती!

    गिरते-पड़ते माँ के दरवाज़े पहुँची

    माँ ने धधाकर हालचाल पूछा

    कौन सी विपत्ति में दुलारी बिटिया ऐसे आई है

    बेटी ने अपना दुःख सुनाया

    और चिरौरी की कि थोड़ी सी जगह दे दो माँ रहने के लिए

    माँ ने कहा विवाह के बाद बेटी को

    नैहर में नहीं रहना चाहिए

    लोग-बाग क्या कहेंगे

    वहीं लौट जाओ जहाँ से आई हो

    और सुनो! बुरा मानना बेटी

    जो तुम्हारी परछाँई पड़ेगी

    तो मेरी बहू बाँझ हो जाएगी

    यह कहकर माँ ने अपना दरवाज़ा बंद कर दिया

    अब सोनचिरई क्या करती!

    उसने धरती से निवेदन किया

    अब तुम्हीं शरण दो माँ

    दुःख सहा नहीं जाता

    इन क़दमों से चला नहीं जाता

    जो लोग पलकों पर लिए चलते थे मुझे

    उनके ओसारे में भी जगह बची मेरे लिए

    अब कहाँ जाऊँ तुम्हारी गोद के सिवा

    धरती ने कहा तुम्हारा दुःख बड़ा है

    लेकिन मैं क्या करूँ

    जहाँ से आई हो वहीं लौट जाओ

    जो मैं तुमको अपनी गोद में रख लूँगी

    तो ऊसर हो जाऊँगी

    और मित्रो इसके आगे जो हुआ

    वह किसी क़िस्से में नहीं है

    हुआ यह कि सब ओर से निराश

    सोनचिरई बैठ गई एक नदी के किनारे

    एक दिन गुज़रा

    दो दिन गुज़रा

    तीसरे दिन तीसरे पहर एक सजीला युवक

    प्यास से बेहाल नदी पर मिला

    उसने सोनचिरई को देखा

    सोनचिरई को देख

    पलभर के लिए वह सब कुछ भूल गया

    उसने विह्वल हो नरम स्वर में

    सोनचिरई से दुःख का कारण पूछा

    और सब कुछ जान लेने पर

    अपने साथ चलने का निवेदन किया

    सोनचिरई पल-छिन हिचकी

    फिर उसके साथ-साथ हो ली

    जब वह मरी

    तो आँसुओं से जार-जार उसके आठ बेटों ने

    उसकी अर्थी को कंधा दिया

    सोनचिरई आठ बेटों की माँ थी

    वह स्त्री थी

    और स्त्रियाँ कभी बाँझ नहीं होतीं

    वे रचती हैं!

    वे रचती हैं तभी हम-आप होते हैं

    तभी दुनिया होती है

    रचने का साहस पुरुष में नहीं होता

    वे होती हैं तभी पुरुष

    पुरुष होते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उर्वर प्रदेश (पृष्ठ 320)
    • रचनाकार : जितेंद्र श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए