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बेदखल

bedakhal

कुमार मंगलम

और अधिककुमार मंगलम

    जिन्हें नहीं आती नींद

    वे अक्सर सपना ही देखें

    यह ज़रूरी नहीं

    जिन्हें बोलना आता है

    ज़रूरी नहीं कि

    वे अक्सर सच ही बोलें

    जिन्हें सुनना आता है

    वे अक्सर

    सही ही सुने

    यह भी ज़रूरी नहीं

    जिन्हें चुनना आता हो

    वह अक्सर

    सही का ही चुनाव करे

    यह भी ज़रूरी नहीं

    जिन्हें बहस करना आता हो

    वे बहस तलब हो

    ज़रूरी नहीं

    मसलन

    हरेक स्वप्न जागरण नहीं

    हरेक बात सच नहीं

    हरेक हरकारा सुनने लायक नहीं

    हरेक चुनाव उचित नहीं

    हरेक बहस बहस तलब नहीं

    कई बार चुप रह जाना जीवन है

    और कई बार चुप रह जाना मृत्यु भी

    झूठ बहुत ऊँचे स्वर में दस्तक देता है

    क्रूरता अचानक ग़ुब्बारे की तरह फैलती है

    मृत्यु का मुख़ अचानक ग्रसता है जीवन को

    अफ़वाह बम की तरह फटता है

    नींद बहुत धीमे दस्तक देती है

    जीवन ऐसे ही चलता है

    जीवन का व्याकरण अक्सर एक सचाई से कहीं अधिक

    एक सबल झूठ को स्वीकारता है

    एक सामान्य जीवन को किसी बात से फ़र्क़ नहीं पड़ता

    उसके जीवन की सचाई

    उसके जीवन के जद्दोजहद में है

    उसका अपना एक ही सच है

    कि उसे मृत्यु तक जीना है

    जीने के किसी भी शर्त के साथ

    नींद बस एक क्षणिक मृत्यु है

    जीवन को जीने तक खींचते चलना ही

    उपयुक्त विचारधारा

    मनुष्यता की सर्वाधिक आबादी अपने जीवन को ऐसे ही ढोती है

    इसके अतिरिक्त जो कुछ है

    वह बुद्धजीवियों, दार्शनिकों, कवियों का या तो प्रलाप है

    या किसी कुशल राजनीतिज्ञ का

    राजनीतिक दाँव-पेंच

    जिसके मोहरे अक्सर सरकार बनाते हैं

    जिसके लाभार्थियों की संख्या उँगलियों के गिनती बराबर है

    बाकी बचे समाज के महत्तम समापवर्तक किसी आँकड़े में दर्ज़ भर होते हैं

    वे विचारों के लघुत्तम गणित से बेदखल हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार मंगलम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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