हँसी
hansi
छोटे शहर की रात के साढ़े आठ बज चुके हैं
हिंदी प्रचारिणी पुस्तकालय के हॉल में
जो मास्टर स्कूली लड़के कुछ लड़कियाँ
कुछ संभ्रांत नागरिक और कुछ रिटायर्ड बूढ़े इकट्ठा थे साढ़े छह बजे से
रम्मू भैया के हाथों तुलसी जयंती समारोह के समापन
और पुरस्कार-वितरण के लिए
उनमें से अधिकांश जा चुके हैं
सबसे पहले लड़कियाँ गईं
सिर्फ़ दो बचीं ऊँचे दाँत और आवाज़ वाली
वीणा वादिनी वर दे के लिए
पिछले तीन वर्षों से उनके पिता तलाश कर रहे थे उसकी
आयोजक कार्यकर्ता और कुछ बूढ़े ही बचे थे अब हॉल में
एक तरफ़ बैठे हुए थे अलग-अलग आयु-वर्गों के पुरस्कार विजेता
जिन्होंने कविता निबंध और वाद-विवाद में इनाम जीते थे
तीन चल-वैजयंतियाँ और आधा दर्जन छोटे-बड़े कप
रखे हुए थे एक कोने में टेबिल पर
जब सजाए गए थे तो उनमें बहुत चमक थी
लेकिन दो-तीन घंटों के बाद वे मंद पड़ गए थे
समारोह समिति के अध्यक्ष साकल्ले वकील के चेहरे की तरह
पुरस्कार पहले ही घोषित किए जा चुके थे
उन्हें सिर्फ़ आज विधिवत् विजेताओं को दिया जाना था
जो छह बजे से ही उजले इस्तरीदार कपड़ों में आ गए थे
और विशिष्ट कोने में बैठाए गए थे
लेकिन कई बार बैठने-उठने की वजह से
अब वे बासी और सामान्य
और चुप हो गए थे
लोगों ने विशेषतः आदर्शवादी लड़कियों ने भी जाने से पहले
उनकी तरफ़ देखना बंद कर दिया था
एक बड़े आदमी की लंबी प्रतीक्षा में
वे बाक़ी सब की तरह मामूली हो चुके थे
एक कार्यकर्ता ने महत्वपूर्ण ढंग से आकर
संयोजक के कान में कुछ कहा
और उन्होंने अध्यक्ष साकल्ले वकील के कान में
दो तीन व्यस्त कार्यकर्ता और आ गए
और माइक पर जिसकी रात नौ बजे के सन्नाटे में
कोई ज़रूरत नहीं रह गई थी
घोषणा हुई कि रम्मू भैया जनपद की सभा से नहीं लौट पाए
अतएव अध्यक्ष महोदय से ही निवेदन किया गया है
वीणा वादिनी गाने वाली लड़कियों ने
अपनी अभ्यस्त करुण पुकार शुरू की
छोटे और मँझोले कपों और तमगों के बाद
तीन चल-वैजयंतियाँ ही रह गई थीं टेबिल पर
एक दुबला लंबा-सा लड़का धँसी हुई आँखोंवाला
सफ़ेद सूती पतलून और चौख़ाने की भूरी क़मीज़ पहने
कविता प्रतियोगिता की शील्ड लेकर वहीं खड़ा रहा
क्योंकि बाक़ी दो भी उसी ने जीती थीं
कोई और समय होता कोई और जगह मसलन उसका स्कूल
तो शायद कुछ देर तक तालियाँ बजतीं
लेकिन रात साढ़े नौ बजे के बाद न लोग थे न जोश
तीनों शील्ड लेकर जब वह जगह पर लौटा
तो दो-तीन लोगों न ही उन्हें हाथ में लेकर देखा
जिनके कोई छह सेर बेडौल वजन को लेकर
रात के साढ़े दस बजे वाचनालय की सीढ़ियों से
वह उतरा और सूनी सड़क पर आया
स्टेशन से सारी गाड़ियाँ छूट चुकीं थीं
इसलिए कोई ताँगेवाला नहीं गुज़र रहा था
वैसे भी इस वक़्त सवा से कम कोई न लेता
और उसकी जेब में दस आने थे
उसने अचानक पाया कि उसे भूख लगी हुई है
और वह पैदल चल पड़ा जहाँ वह रहता था
करीब डेढ़ मील दूर
रास्ते में एक ठेले वाला मिला जिसकी गैसबत्ती कत्थई होती जा रही थी
नमकीन भुनी मूँगफली के छोटे ढेर
और पेठे के टुकड़ों पर धूल की जिल्द थी सेकंड शो के इंटरवल की
जब वह तौल रहा था तो उसकी निगाह
लड़कियों के उन तीन तख़्तों पर थी जिन पर चमकदार कुछ लगा हुआ था
यह क्या चीज़ है बाबू साहब उसने पूछा
कुछ नहीं यूँ ही उसने कहा और जल्दी जाने लगा
लेकिन कुछ दूर तक उनके रास्ते एक थे
और बत्ती की कभी कत्थई कभी सफ़ेद रोशनी
उस पर पड़ती रही उसकी छाया को
सड़क के छोरों और घरों की ऊँचाइयों तक फेंकती हुई
एक हाथ में तीन इनाम और दूसरे हाथ से
जेब में पड़ी मूँगफली और पेठे के टुकड़ों से
कशमकश करते हुए एक शील्ड फिसली
और ग्यारह बजे रात के सुनसान में धमाके की तरह गिरी
बंद होटल के पास घूरे पर से चौंका हुआ कुत्ता भौंकने लगा
पास के घर से ऊपर की खिड़की खुली
और एक भर्राई आवाज़ ने पूछा कौन है रे रामसरन
गश्त लगाता हुआ कानिस्टबिल टॉर्च फेंकता
साइकिल पर फुर्ती से उस तरफ़ आया
क्या मामला है उसने घबराए हुए रोब में पूछा
कुछ नहीं यह गिर पड़ी थी
क्या है ये सामान कहाँ लिए जा रहे हो
इनाम मिला है घर जा रहा हूँ
कैसा इनाम है ये क्या चाँदी जड़ी हुई है
नहीं चाँदी नहीं है शायद पीतल पर पॉलिश है
रहते कहाँ हो कहीं पढ़ते हो क्या
यहीं पास में रामेश्वर रोड पर गवर्मेंट स्कूल में
उसके निष्कंप जवाब और अपने पशोपेश की वजह से
कानिस्टबिल तरद्दुद में था
लेकिन उसने आख़िरी सख़्ती से कहा
रात में इस तरह अकेले घूमना ठीक नहीं
इधर वारदातें बढ़ गई हैं
और उसे जाने दिया
इस अंतराल ने उसके दुखते हाथों और थके पैरों को
कुछ राहत दी थी
और वह तेज़ी से चल पड़ा घर की ओर
जो अब सिर्फ़ दो फ़र्लांग दूर रह गया था
जानते हुए कि कानिस्टबिल खड़ा उसे देखता रहेगा
जब तक सड़क के मोड़ पर वह ओझल न हो जाए
दरवाज़े की सीढ़ियों पर सावधानी से तीनों को रखकर
उसने ताला खोला
पिता की आज भी कोई चिट्ठी नहीं थी
पहली बार ध्यान से तीनों शील्डों को कुछ देर तक देखा
जो गिरी थी वह दचक गई थी और उस पर कंकरों की खरोंच थी
पिछले विजेताओं के नाम खुदे हुए थे उन पर
कौन थे वे लड़के पता नहीं
क्या स्कूल उसका नाम भी उन पर खुदवाएगा
टेबिल पर उन्हें रख कर वह सोचने लगा
सुबह किताबों-कॉपियों के साथ इन्हें भी ले जाना होगा
जहाँ वे हेडमास्टर के कमरे की अल्मारी में रखी जाएँगी
सुबह प्रेयर के बाद तीन मैली चमकवाली शील्ड
और उनके विजेता खड़े किए गए सारे स्कूल के सामने
और होशंगाबाद डिवीज़न में प्रख्यात हेडमास्टर
मुकुंदीलाल चतुर्वेदी ‘मकरंद’ ने अपना उद्बोधन दिया
जिसे सामने कक्षावार क़तारों में खड़े हुए लड़के
‘अनुसरण करने’ और ‘प्रभावित होने’ का भाव चेहरे पर लिए सुनते रहे
पीछे छाँह में खड़े हुए थे दुबले अन्यमनस्क मास्टर
मैदान से आती हुई हवा शील्ड और उनके हत्थों के बीच सरसरा रही थी
वह उसकी विनम्रता नहीं थी
शील्ड धीरे-धीरे हिल रही थीं लेकिन गिर नहीं रही थीं
पिछली रात की तरह
यह सोचता हुआ अपनी चौख़ाने की क़मीज़ की दूसरी बटन तक
सिर नीचा किए हुए वह चुप हँस रहा था
वीणा वादिनी साकल्ले वकील गैस की कत्थई उजली बत्ती
भौंकते हुए कुत्ते भौंचक्के कानिस्टबिल के बीच
लंबे रास्ते पर अपनी निर्जन विजय का अकेला बोझ लिए लौटने को
हेडमास्टर के तल्लीन भाषण पीछे बातें करते हुए लड़कों
ऊबे हुए मास्टरों और सरसराती हवा से
अचानक समझता हुआ।
- पुस्तक : पिछला बाक़ी (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : विष्णु खरे
- प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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