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आँगन जो साक्षी है

angan jo sakshi hai

दीपक नवीन

दीपक नवीन

आँगन जो साक्षी है

दीपक नवीन

और अधिकदीपक नवीन

    आम के पेड़ की छाँव ओढ़े

    मुनगे के पेड़ के फूलों को चूमते हुए

    मेरे घर का बड़ा आँगन

    मुस्कुरा रहा है बहुत शान से

    बचपन में इसी आँगन में

    पुष्ट हुआ है मेरा शरीर

    जिसे उठाना था बाद में एक बड़ा दुःख

    यह आँगन बिछौना था मेरे घर की बड़े दाई का

    जिसे कंपकपाती सर्दी में भी ठँड नहीं लगती थी

    यह बना कभी मेरे पिता और बुआ की शादी का पुण्य-स्थल

    और एकादशी के दिन मेरे दादा इसी आँगन में कहीं हो गए गुम

    पिता कभी आए थे लेने हम सबसे विदा अचानक ही

    यह आँगन साक्षी था गाँव के छोटे बड़े महत्वपूर्ण निर्णयों का

    मेरी माँ ने इसी आँगन में गिराया था चावल से भरा कलश

    जिसके बाद यह आँगन हुआ अधिक समृद्ध भी

    इस आँगन नें पिया है गाँव के लोगो के आँखों का पानी

    और बनिहारों का पसीना

    जिसमे सिमट जाए हर किसी के जीवन का छोटा बड़ा सुख-दुख

    इसलिए जीवन में मैं कुछ नहीं

    बस बनना चाहता हूँ अपने छोटे से

    गाँव का वह बड़ा-सा आँगन!

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीपक नवीन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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