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महिला पुलिस और उसकी बहन

mahila police aur uski bahan

ऋतुराज

ऋतुराज

महिला पुलिस और उसकी बहन

ऋतुराज

 

मैं तो तुझसे बचपन से ही नफ़रत करती रही हूँ 
मेरा रिबन चोरी कर लेती थी 
मेरी फ़्रॉक के बटन तोड़ देती थी 
मेरी गुड़िया छिपा देती थी 

मैं तुझे बहुत पहले से बर्दाश्त करती आई हूँ
तू दीदी-दीदी कहती हुई 
मेरी चप्पल पहनकर भाग जाती थी 

आज इस जुलूस में तुझे सबक सिखाऊँगी 
तू मेरे बाल नोचेगी 
और मैं तुझे नीचे पटककर डंडे से मारती रहूँगी 
जितनी चीख़ेगी उतनी ही मार खाएगी 

हमें आदमी जितना क्रूर बनना सिखाया जाता है 
हमसे कहा जाता है कि जहाँ कहीं भी महिलाएँ 
तोड़फोड़ और बग़ावत पर आमादा हों
उनकी अच्छी तरह धुनाई की जाए 

बहुतेरी ऐसी हैं जो आदमी से पिटने पर भी 
कुछ नहीं कहती हैं 
‘सखाराम बाइंडर? नहीं, नहीं, नाटक वाली बात नहीं’
महिला पुलिस को बहुत सख़्त होना पड़ता है 
आदमी क्या जाने कि कौन-कौन से नाज़ुक अंग 
हमारे शरीर के उससे बचे हैं 
जहाँ डंडा मारने से बरसों तक दुखता रहता है 

स्रोत :
  • पुस्तक : आशा नाम नदी (पृष्ठ 45)
  • रचनाकार : ऋतुराज
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2007

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