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सिर्फ़ कश्मीर नहीं

sirf kashmir nahin

पराग पावन

पराग पावन

सिर्फ़ कश्मीर नहीं

पराग पावन

और अधिकपराग पावन

    सिर्फ़ कश्मीर नहीं

    यह समूचा देश तुम्हारा हो

    लेकिन क्या क़यामत है दोस्त!

    तुम्हारी देह इतनी छोटी है

    कि मात्र एक बिस्तर भर सो पाओगे

    तुम्हारी थकान अदद एक पेड़ की छाया में सिमट जाएगी

    तुम्हारी भूख दो आलू के मुक़ाबले भी बौनी है

    और सारी ज़िंदगी चलकर भी

    तुम्हारी प्यास अपना ही कुआँ लाँघ नहीं पाएगी

    क्या आख़िरी आदमी के क़त्ल होने के बाद ही

    तुम समझ पाओगे

    कि तुम्हारे पास भी एक गर्दन है

    क्या आख़िरी आदमी के क़त्ल होने के बाद ही

    तुम महसूस कर पाओगे

    कि निर्जन धरती पर अकेले चीख़ते व्यक्ति की

    वह प्रार्थना भी अनसुनी रह जाएगी

    जिसमें मृत्यु की भीख माँगी जाती है

    जो धरती को जीतने निकले थे

    धरती उन्हें भी जीतकर चुपचाप सो रही है

    जहाँ तुम खड़े हो

    वहीं दबी किसी सिकंदर की राख से

    मेरे कहे की तस्दीक़ करो

    ये सरहदों के उलझे मसले उनकी तलब हैं

    जो झरते हुए कनेर के उत्सव से

    बहुत दूर चले गए हैं

    और जिनके दिल के शब्दकोश से

    प्रेम और करुणा जैसे शब्द

    कब का विदा ले चुके हैं

    सिर्फ़ कश्मीर नहीं

    समूचे देश को अपनी जेब में रखकर घूमने वाले दोस्त!

    सरकारी जश्न से फ़ुर्सत मिले तब सोचकर बताना

    कि मामूली इंजेक्शन के अभाव में

    मर गए पिता की याद को

    किस ख़लीते में छुपाओगे?

    स्रोत :
    • रचनाकार : पराग पावन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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