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अकथ

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प्रकाश

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और अधिकप्रकाश

    मेरे पास कहने को कुछ नहीं था

    सो जन्मों से कहता जाता था

    कहने को होता

    तो कहकर चुक जाता

    कहने को कुछ नहीं था

    सो वाणी डोलती थी

    केवल कुछ तरल-सा हुआ करता था

    कहने को कुछ नहीं था

    सुबह कोहरा रहता था

    समय चुपचाप बहता था

    मैं हर बार एक हिलते पौधे से

    एक अंजुरी फूल चुनकर

    धारा में डाल देता था

    और चुपचाप प्रणाम करता था!

    स्रोत :
    • पुस्तक : होने की सुगंध (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : प्रकाश
    • प्रकाशन : शिल्पायन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स
    • संस्करण : 2009

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