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सीढ़ियाँ

siDhiyan

गोविंद माथुर

गोविंद माथुर

सीढ़ियाँ

गोविंद माथुर

और अधिकगोविंद माथुर

    वर्षों पुराने घर के नक़्शे में

    समय-समय पर

    होता रहा बदलाव

    चूने के फ़र्श की जगह

    बना सीमेंट का फ़र्श

    आराइश की दीवारें

    पड़ गईं पुरानी

    उखड़े हुए पलस्तर पर

    चढ़ा नया पलस्तर

    छोटी-छोटी खिड़कियों को

    तोड़कर बनी बड़ी खिड़कियाँ

    कमरों में आया प्रकाश

    पुराने किवाड़ों की जगह

    लगे नए किवाड़

    सब कुछ हुआ धीरे-धीरे

    अब भी लगता है

    जैसे कुछ बदला ही हो

    अब भी घर लगता है

    वर्षों पुराना घर

    जैसे बदले हों सिर्फ़ चेहरे

    लोग वही हों

    जैसे टूटी हो बच्चों की नींद

    सुस्त और चुप बच्चों की जगह

    आएँ हँसते खिलखिलाते बच्चे

    कहने को बहुत कुछ बदला

    पर नहीं बदली चाँदनी से

    छत पर जाती सीढ़ियाँ

    ऊँची-ऊँची खड़ी-खड़ी सीढ़ियाँ

    जैसे अवशेष हो किसी

    पुराने खंडहर का

    सीढ़ियों के एक तरफ़ दीवार नहीं है

    ही कोई रेलिंग

    बुजुर्ग चढ़ते हैं मुश्किल से

    उतरते हैं बैठ-बैठ कर

    युवा चढ़ते-उतरते हैं सतर्कता से

    रिश्तेदार, परिचित और मित्र

    घबरा जाते हैं सीढ़ियाँ देखकर

    ज़रूरी हो तो ही चढ़ते हैं

    और दे जाते हैं मशविरा

    सीढ़ियाँ बदलने का

    बच्चों को नहीं मालूम

    कैसी होनी चाहिए सीढ़ियाँ

    बच्चे चढ़ते-उतरते हैं धड़ल्ले से—

    दिन में सौ-सौ बार

    इन सीढ़ियों पर चढ़ी हैं

    मेरी कई पीढ़ियाँ

    इन सीढ़ियों से

    उतरी हैं मेरी कई पीढ़ियाँ

    कुछ पूर्वज गिरे भी हैं

    जिनकी अब हमें याद नहीं

    कुछ बच्चे भी गिरे हैं

    जो अब भी

    चढ़ते-उतरते हैं निर्भय होकर

    मेरा चार वर्ष का बेटा

    उतरता है सीढ़ियों से तरह-तरह से

    कभी दोनों पाँव उठा कर कूदता है

    कभी दोनों हाथों में

    खिलौने लिए चढ़ता है

    कभी ऊपर देखकर

    बात करता हुआ

    कभी नीचे देखकर हँसता हुआ

    ये सीढ़ियाँ इसे बताएँगी

    इस घर का इतिहास

    इन सीढ़ियों से ही

    वह पहचानेगा इस घर को

    मेरी स्मृति में

    अभी बहुत कुछ बाक़ी है

    सीढ़ियों के अतिरिक्त भी

    इस बच्चे की स्मृति में

    होंगी केवल सीढ़ियाँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : गोविंद माथुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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