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शुभचिंतक

shubhchintak

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

शुभचिंतक

मोना गुलाटी

शताब्दियों से जल रहा है सूरज

वे कहते हैं

प्रायश्चित कर रहा हे

वे यह भी कहते हैं

यति है : तपस्यारत

वे कुछ भी कहें

तुम्हें विश्वास करने पर

मजबूर नहीं कर सकते : पर

वे कहते हैं

मजबूर नहीं करेंगे हम : साथ-साथ वे

यह भी कहते हैं

कि कुछ हैं जो तुम्हें मजबूर करते हैं और

तुम्हारी कमज़ोरियों का फ़ायदा उठाते हैं और

तुम्हें छोड़ देते हैं : (धकेल देते हैं)

लपटें उगलते

आसमान के नीचे ताकि तुम्हारी

चमड़ी का रंग काला पड़ जाए और बदल जाए

तुम्हारी पहचान :

वे यह भी कहते हैं पहचान के

नए रास्ते और

चिह्न वे तुम्हारे हाथों

में सौंप देंगे

विरासत की तरह :

वे तुम्हें अपेन क़द, कंधों के तनाव

रीढ़ की हड्डी के बूते पर

ख़ुद को ढूँढ़ना सिखाएँगे :

वे सिद्ध कर देंगे कि

सूरज तो प्रायश्चित कर रहा है

और ही तपस्या :

सूरज मात्र आग है

जो तुम्हें अपने ख़ून में

देखनी है और

लपटों से भर देना है पूरे देश को :

इस नगर, क़स्बे या जंगल में कुछ रहे या रहे :

पर दावानल होगा :

होना चाहिए :

आग :

आग का लाल रंग : —ख़ून और

क्रांति का रंग है

तुम्हें कुछ करना है

तो ख़ून हो जाओ और हो जाओ

चमकदार रक्तिम पिंड।

वे

तुम्हें

बार-बार बताएँगे

बार-बार छोड़ देंगे उसी

रास्ते पर,

जहाँ से लौटने पर गोली दाग़ दी

जाती है :

जहाँ होने पर सिवाय

दौड़ने के और कोई

आकांक्षा करने पर, कुछ नहीं

देखने दिया जाता।

वे तुम्हें सतर्क करेंगे : कि तुम

सूरज, आसमान, हवा और अपने साँस लेने को

लेकर चाहे कुछ

सोचो : वे तुम्हें

मजबूरी नहीं करेंगे : पर कुछ हैं

जो तुम्हारे

शोषण में विश्वास रखते हैं और

हड़ताल का इंतज़ाम

हमेशा बंद रखते हैं अश्रु गैस किरच में।

तुम उनसे सतर्क रहो : वे तुम्हें

विश्वास दिलाते हैं

कि वे तुम्हारी हथेलियों को बदल देंगे :

तुम मात्र अपनी साँस गिनने का अधिकार उन्हें दे दो।

वे हिसाब से

आसमान के टुकड़े और

हवा के रंग सबमें बाँट देंगे।

विश्वास रखो : वे तुम्हारे

शुभचिंतक हैं!

स्रोत :
  • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 20)
  • रचनाकार : मोना गुलाटी

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