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श्री गांधी-स्तव

shri gandhi staw

सत्यनारायण कविरत्न

सत्यनारायण कविरत्न

श्री गांधी-स्तव

सत्यनारायण कविरत्न

और अधिकसत्यनारायण कविरत्न

    (1)

    जय-जय सदगुन सदन अखिल भारत के प्यारे।

    जय जगमधि अनवधि कीरति कल विमल उज्यारे।

    जयति भुवन-विख्यात सहन-प्रतिरोध सुमूरति।

    सज्जन सम भ्रातृत्व शांति की सुखमय सूरति।

    जय कर्मवीर त्यागी परम आत्म-त्यागि-विकास-कर।

    जय यस-सुगंधि-बितरन करन गांधी मोहनदास वर॥

    (2)

    जय परकाज निबाहन कृत बंदी गृह पावन।

    किंतु मुदित मन वही भाव मंजुल मनभावन।

    मातृभक्त जातीय भाव-रक्षण के नेमी।

    हिंदी हिंदू हिंद देश के साँचे प्रेमी।

    निज रिपुहू कौ अपराध नित छमत कुछ शंका धरत।

    नव नवनीत समान अस मृदुल भाव जग-हिय हरत॥

    (3)

    जयति तनय अरु दार सकल परिवार मोह तजि।

    एकहि व्रत पावन साधारन ताहि रहै भजि।

    जय स्वकार्य तत्परता-रत अरु सहनशील अति।

    उदाहरन करतव्य-परायनता के शुचमति।

    जय देशभक्ति-आदर्श प्रिय शुद्ध चरित अनुपम अमल।

    जय जय जातीय तड़ाग के अभिनव अति कोमल कमल॥

    (4)

    जय बिपत्ति में धैर्य्य धरन अविकल अविचल मन।

    दृढ़ व्रत शुच निष्कपट दीन दुखियन आस्वासन।

    जय निस्स्वारथ दिव्य जोति पावन उज्जलतर।

    परमारथ प्रिय प्रेम-बेलि अलबेलि मनोहर।

    तुमसे बस तुमहीं लसत और कहा कहि चित भरैं।

    सिवराज प्रतापSरु मेज़िनी किन-किन सों तुलना करैं॥

    (5)

    एक ओर अन्याय, स्वार्थ की चिंता बाढ़ी।

    अत्याचार अपार घृणित निर्दयता ठाढ़ी।

    अपर ओर मनुष्यत्व स्वत्व की मूरति निर्मल।

    कोमल अति कमनीय किंतु प्रतिपल प्रण अविचल।

    यहि देवासुर संग्राम में विदित जगत की नीति है।

    बस किंकर्तव्य विमूढ़ बहु भूलि परस्पर प्रीति है॥

    (6)

    अपुहिं सारथी बने कमलदल आयत लोचन।

    अरजुन सों बतरात विहँसि त्रयताप-बिमोचन।

    धीरज सब विधि देत यही पुनि-पुनि समझावत।

    दैन्य पलायन एकहु ना मोहि रन में भावत।

    इक निमितमात्र है तू अहो क्यों निज चित विस्मय धरै।

    गोपालकृष्ण मोहन मदन सों तुम्हार रक्षा करै॥

    (7)

    यहि अवसर जो दियौ आत्मबल कों तुम परिचय।

    लची निरंकुश शक्ति भई मुदमई सत्य जय।

    जननी जन्मभूमि भाषा यह आज यथारथ।

    पूत सपूत आप जैसों लहि परम कृतारथ।

    लखि मोहन मुखचंद तव याकें हृदय उमंग है।

    त्रयतापहरत मन मुद भरत लहरत भाव तरंग है॥

    (8)

    निज कोमल वाणी सों हिंदू जाति जगावौ।

    नवजीवन यहि नीरस मानस में उमगावौ।

    अब या हिंदी को सिर निर्भय उच्च उठावौ।

    सुभग सुमन याकें पद पदमनु चारु चढ़ावौ।

    यह नम्र निवेदन आप सों जिनकों प्रेम अनन्य है।

    ह्वै न्यौछावर तव चरनु पै हम जीवनधन धन्य है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 84)
    • संपादक : नंद किशोर नवल
    • रचनाकार : सत्यनारायण कविरत्न
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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