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शोक-प्रस्ताव की तरह एक कविता

shok prastaw ki tarah ek kawita

अनिल कुमार सिंह

अनिल कुमार सिंह

शोक-प्रस्ताव की तरह एक कविता

अनिल कुमार सिंह

और अधिकअनिल कुमार सिंह

     

    लाल जी के लिए

    तुम्हारी माँ की आँखों में थरथराते ये आँसू
    सिर्फ़ तुम्हारे लिए नहीं

    हज़ारों माँओं का दुख है उनमें
    हज़ारों कलेजे के टुकड़ों के लिए
    जो पिसते जाते हैं
    दिन-ब-दिन
    सुख-सुविधा की अंधी दौड़ में

    तुम्हारे लिए मौत ने सिर्फ़
    पच्चीस साल इंतज़ार किया
    तुम्हारे पिता को उसने पैंतीस वर्ष दिए थे

    तुम्हारा मरना सामान्य नहीं
    इतना मैं जानता हूँ

    मैं जो कि याद करता हूँ तुम्हें
    अपने साथ खेलते हुए
    स्कूल में और पेश करता हूँ
    शोक-प्रस्ताव की तरह एक कविता

    भूख से ऐंठती आँतों का अनुभव
    नहीं है मुझे और चाँद तो अभी भी
    प्यारा लगता है
    पूस की रातों में उसकी
    शीतलता ने मेरा कलेजा नहीं
    दहलाया कभी

    खेतों में काम किया है मैंने भी
    पर तुम्हारी तरह पराए खेतों में नहीं

    तुम जो कि मिट्टी में मिल गए हो अब
    ज़मीन के एक टुकड़े के लिए तरसते रहे
    अपने बाप की तरह ता-उम्र

    तुम जो कि लुहारी करते थे और
    औज़ार बनाते थे ज़मीन
    जुताई करने वाले
    अब मिट्टी में मिल गए हो

    ज़िंदगी का ऊसर नहीं तोड़ पाए तुम

    पृथ्वी तुम्हारे लिए झूठी नहीं थी
    तुम उसी में पैदा हुए थे और
    बढ़े थे मौत की गलबहियाँ थामे

    मृत्यु नियति नहीं थी 
    तुम्हारे तईं वह सच्चाई थी
    छाती में गड़ी कील की तरह जिसे
    उखाड़कर फेंक देने का सपना
    तुमने पाला था

    तुम जो कि मिट्टी में मिल गए हो अब।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पहला उपदेश (पृष्ठ 52)
    • रचनाकार : अनिल कुमार सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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