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श्मशान ׃ एक लैंडस्केप

shmshan ׃ ek lainDaskep

जगदीश चतुर्वेदी

जगदीश चतुर्वेदी

श्मशान ׃ एक लैंडस्केप

जगदीश चतुर्वेदी

और अधिकजगदीश चतुर्वेदी

    सुनसान श्मशान... निस्तब्धता

    धधकती चिताएँ

    गीदड़ की सिसकियाँ!

    सुनते हो—

    अवचेतन की टिकटिक?

    धड़कनें धधकीं

    कुछ लकड़ियाँ चटकी हैं

    पागल-सा,

    भंगी का खजैला कुत्ता

    मांस नोचता है,

    क्षणभंगुर जीवन का!

    तुमने—

    हाँ, सौंदर्य के सप्त द्वीपों के आकर्षण

    तुमने ही

    ठगा मुझे—

    मेरे निष्पाप, मासूम व्यक्तित्व को,

    जिसमें

    आकर्षण का घिनौना विष नहीं था!

    कल—

    जब मेरी कृतियों की मीनारें

    कुतुब के परदों से,

    ताज,

    (नहीं उस मातम के गुंबद से नहीं)

    पिरामिड स्फ़ेनिक्स के परदाननशीं

    कमरों से,

    बातें करने कभी सोते-से

    जाग उठेंगी।

    तब—

    मेरी श्वास-शिंजनी!

    मैं,

    तुम्हें,

    क्या कह कर पुकारूँगा?

    मैं

    तुम्हें (शायद अपनत्व की चरम को)

    अस्थिपंजर का

    नोचा हुआ एक लोथड़ा कहूँगा,

    जिसने मेरे व्यक्तित्व के

    कई क्षण,

    नोच कर गंदी ओखरी में

    फेंक दिए हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पूर्वराग (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : जगदीश चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : राजेश प्रकाशन
    • संस्करण : 1982

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