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शिकारी हमारे पैदा होते ही निकल चुका है शिकार पर

shikari hamare paida hote hi nikal chuka hai shikar par

दीपक जायसवाल

दीपक जायसवाल

शिकारी हमारे पैदा होते ही निकल चुका है शिकार पर

दीपक जायसवाल

और अधिकदीपक जायसवाल

    जीवन इतना ख़ूबसूरत है

    जितना फूलों का खिलना

    तितली के पंख

    इंद्रधनुष के रंग

    हल्की बारिश

    किसी चिड़िया का कंठ

    किसी बूढ़े दादा का ठहाका।

    यह इतना अनिश्चित है

    कि हर इक क़दम पर

    मौत जैसे आपको माफ़ी दे रही हो

    और हम इतने निश्चिंत कि जैसे मान बैठे हों—

    यह जीवन हमेशा से हमारा था और रहेगा।

    शिकारी हर पल शिकार पर है

    हिरण की गर्दन दबोच शेर जैसे चलता है

    मौत हमें ले चलेगी एक दिन।

    मगर ओह मेरी महत्वाकांक्षाएँ

    ख़ून पीती हैं हर इक दिन हर इक पल

    यह जानते हुए भी कि एक दिन

    मेरी प्यारी चदरिया कफ़न की तरह दिखेगी।

    काश कोई रास्ता होता

    जिसमें दर्द-रक्त-आँसू-अवसाद की जगहें कम होतीं

    और तमाम ज़रूरतों के लिए उठाए गए हाथों को हरदम

    यह भी याद होता कि

    आग, मिट्टी, क़ब्रें इंतज़ार में बैठी हैं हमारे।

    शिकारी हमारे पैदा होते ही

    शिकार पर निकल चुका है

    जितना नेह होगा

    दर्द का खाता उतना लंबा होगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : दीपक जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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