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शिकारी

shikari

अखिलेश श्रीवास्तव

और अधिकअखिलेश श्रीवास्तव

    तो शिकारी गुम हुए

    रक्तपान की इच्छा

    तीर-तलवार-तरकश सब जस के तस हैं

    अभी भी छाती तलाश ली जाती है

    भाले की नोक परखने के लिए

    घुप्प चुप्पा लोग भी ग़ज़ब वाचाल हो उठते हैं

    अँधेरे कमरे में व्यूह रचना के समय

    ये जो परम हितैषी दिख रहे हैं

    चल रहे हैं छड़ी थामे हुए

    संहार का मौक़ा पाते ही इसे

    कुल्हाड़ी की मूठ में बदल देंगे

    जो शामिल नहीं हैं तुम्हारी हत्या में

    वे भी निहत्थे नहीं हैं

    उन पर तारी है एक मुस्कान

    जो छुपाए नहीं छुप रही

    तुम्हारी चीख़ के पीछे

    अट्टहासों का हुजूम चल रहा है

    अगर बचे रहे तो भूल जाना

    वार करने वालों को

    हथियार, षड्यंत्र, मुख़बिर, मोहरा सब पर

    कुटिल मुस्कानों को याद रखना

    वे इंकार करेंगे पर तुम पकड़े रहना

    उन मुस्कानों की तासीर

    वह समय और

    तुम्हारे गिरने पर उनके खुलकर हँसने की ललक

    तुम भेड़ियों की लार याद रखना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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