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शायर की पहचान

shayar ki pahchan

देव

देव

शायर की पहचान

देव

और अधिकदेव

    कवि का कोई घर नहीं होता

    शायर कभी घर में नहीं होता

    उसका तो एक स्वप्न होता है

    सपने की कल्पना

    सृजन का सफ़र

    शायर को घर मत जाना मिलने

    वहाँ तो सामान्य-सा संबंध होगा

    शारीरिक, सनातनी

    सनकी या शरारती

    कवि कभी घर नहीं रहता

    जो कवि को खोजने घर जाते हैं

    वे पिंजरे के पंछी हैं

    परंपरा की भूत-प्रतिछाया का खेद-भर है।

    शायर को मिलने कहीं और जाना

    महज़

    सहज उसके शब्दों में

    शायर का पता उसका द्वार होगा

    कवि की पहचान

    उसके माथे में

    धूप-छाँह खेलती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 257)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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