शववाहक का गीत
shawwahak ka geet
कितने दिन, माह, वर्ष, अग्निवर्ण शताब्दियों तक
फिरना होगा, पहाड़ के शिखर से ढलती उपत्यका
जगत के धूसर, पराग नील में,
बालू के पटल पर, झरने के किनारे-किनारे
स्रोत के अंत तक, सागर किनारे?
कंधे पर ढोकर सती को शिव,
निरीह स्वप्न की सुंदर पँखड़ी,
कितने दिन फिरना होगा?
साक्षी रख दिन सीमंतिनी,
दिगंत आकाश, युग-युग में सूर्य-चंद्र, तारे!
और मैं ढो पाता नहीं
शव तुम्हारे श्वेत सतीत्व का।
अरण्य आत्मा की नींद और टूटती नहीं
रंग-बिरंगे पक्षियों की पुकार पर
आज और रो पाता नहीं अध-देखे स्वप्न की छाँव में,
विवर्ण आकाश समूचे विषुवीय सूरज का शिविर,
सहमे-सकुचे तारे विराजित पांडुर आलोक में,
पलातक सुनसान निःसंग रात की पृथ्वी,
ज़रा भी लगती नहीं अच्छी
अब और क़तई अच्छी लगती नहीं।
आजकल आँसू बंद हैं!
उदास उद्यान में शीत रात के कोहरे में पगध्वनि-सी
कब नींद आ जाती
मुँदती जा रही उदासीन थकी आँख में,
प्रथम चुंबन में पुलकित फूलों के स्वप्न में भरी नौका
स्थिर रहती, मुँदते जा रहे
कई दिन अश्रुलिप्त प्राचीन बंदर में।
आजकल सुदर्शन समय की करौत पर
शव का वज़न होता नहीं साँस में;
पग आगे बढ़ाने पर
छाती में बजती मर्दल,
घंट और भेरी
पेट के नीचे दौड़ जाता चूहा
हिलाकर नाभिकेन्द्र की नस-नस,
शंख-सी ध्वनि करती साँस-साँस।
यहाँ मैं रह जाता स्थिर आज
अशिव पत्थर बन बरसने तक
एक जन्मांतर मेघों के राज्य से।
पृथ्वी के हर संगीत की करुण विहाग
नदी बन बह जाने तक
हृदय से हृदय को
एक और मधुर हद हो।
तुम उतर आ मेरे कंधे बैठती
अपने सुंदर अजय के अनुकूल पवन पर
बह रही किसी डोंगी पर।
डोंगी का मालिक:
ख़ूब हट्टा-कट्टा मर्द
पृथ्वी को नई-नई पहचानता दर्द में भरे
उसके होंठ, आँख और कपाल
जिसकी एक भौंह पर सोई है
कनेर-सी हलद मखमली रात
और दूजी पर बरफ़ के पहाड़ से बही आती
कुँवारी झरने की
कल-कल गीत भरी भोर।
आज यहाँ प्रतीक्षा करता मैं
अगणित हंस और बकों का वलय-भेद
किसी साँझ के वर्षणोन्मुख मेघ के वापसी स्वप्न को।
दस दिन में दस रूप धर
कोई आता हो
मेरी गीत गाती
घुंघरू ध्वनि में;
ख़ूब उत्ताल स्वर!
अनेक व्यंजन वर्ण की
आलोक रश्मि में।
अग्नि-वर्णी साड़ी पहन
शायद कोई आती हो मेघ-से केश खोलकर
बिजली-सी खांडे को थामे पद्मनाल हाथ में
'महाविद्या' दर्पण के कोरकित
प्रतिफलन में।
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 188)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : दिलीप दास
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
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