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शत्रु अनादि काल के

shatru anadi kal ke

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

शत्रु अनादि काल के

ऋतेश कुमार

और अधिकऋतेश कुमार

    हमारी कहानियों में

    उनकी प्रकृति इस तरह रची गई थी

    कि हमारे लिए वे हज़ारों साल पहले

    लुप्त हो चुकी किसी प्रजाति की तरह थे

    वे थे साबूत

    संविधान के एक शब्द में समाए हुए

    जिनका हमारी

    सुनी हुई कहानियों से कोई संबंध नहीं था

    उन्हें हम इतिहास के पहले पन्ने पर पाकर भी

    अपने पूर्वजों की कहानी से बाहर देखते थे

    गाँव में भैया ने पहली बार बताया था राँची से लौटकर

    वहाँ सिर्फ़ कोल भील बसते हैं

    दिमाग़ में अजीब-सी आकृतियाँ बनी थीं तब

    जंगल की

    जंगल में रहने वालों की

    रामायण-महाभारत-पुराण पढ़ते हुए जाना था

    देवताओं से लड़ने वाली थी कुछ जातियाँ

    देवताओं ने उनका कर दिया था वध

    कहीं-कहीं तो अपनी इच्छा से उन्होंने

    करवा लिया था अपना संहार

    उन कथाओं के देवताओं की विजय-गाथा की

    जन्म-जन्मांतरों से हम किए जा रहे पाठ

    उनकी जीत की मनाते रहे वर्षगाँठ

    जलाते रहे पुतले उनके द्वारा मारे गए पात्रों के

    और मान बैठे कि ख़त्म हो गए वे

    उन कहानियों के साथ ही

    कल मेरा वह मित्र

    मिथकीय कहानियों पर बात करते हुए

    कह गया ख़ुशी से

    वह भी है नागवंशी

    सूर्यवंशियों-चंद्रवंशियों से पटी दुनिया में

    जैसे वह स्वयंभू प्रकट हुआ

    वासुकी, तक्षक हैं जिसके पूर्वज

    वही जिनका पांडेयों से हुआ था संघर्ष

    वही जिनके विरुद्ध जनमेजय ने छेड़ा महायुद्ध

    जिसे निष्फल किया था आस्तिक ने

    मंच से कहता है कोई ज्ञानी

    हममें ही है

    कोई असुर

    राक्षस कोई

    तब हमारी भाषा के परे

    वे सुन रहे होते हैं चुपचाप

    मंचस्थों की ज़ुबान से सभ्यों की बनाई कहानी

    अपने पूर्वजों की क्रूर कथा

    उनकी कथा हमने कभी नहीं सुनी

    कहानियों के बाहर

    अपने उस मित्र को

    जाने कितनी बार

    मैंने भी तो पुकारा होगा

    कहानियों के प्रतीकों से बनी अपनी भाषा में

    जिसमें में मैं आज भी हूँ मनुष्य

    और वह राक्षस

    जिसमें मेरे पूर्वज हैं विजयी नायक

    और उसके पूर्वज

    क्रूरता और असभ्यता के प्रतीक

    अच्छे के विलोम

    हस्तिनापुर के निर्माण के लिए

    उजड़ते रहे हैं जंगल

    तक्षक से

    उसका खांडव प्रदेश छीनने का प्रयास

    आज भी है जारी

    आज भी वे लड़ रहे हैं

    जंगल और नदी को बचाने की अपनी लड़ाई

    सामने खड़े हैं बंदूक़ लिए कहानियों के नायक

    हमारी भाषा में वे

    आज भी सभ्यता और विकास के

    विरुद्ध खड़े शत्रु हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतेश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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