शक्ति के उन्मत्त भैरव और न्याय माँगते हुए रोओं के हाथ
shakti ke unmatt bhairaw aur nyay mangte hue roon ke hath
मदन रेग्मी
Madan Regmi
शक्ति के उन्मत्त भैरव और न्याय माँगते हुए रोओं के हाथ
shakti ke unmatt bhairaw aur nyay mangte hue roon ke hath
Madan Regmi
मदन रेग्मी
और अधिकमदन रेग्मी
मेरे जैसे न्याय माँगने वाले रोओं के हाथ
कुलबुलाते हैं जब-जब भी
एक ज़िंदगी में एक ही बार
कुलबुलाते हैं जब-जब भी
सुस्त और नि:शब्द
काठमांडू के बाज़ार के शक्ति के उन्मत्त भैरव
अपनी हथेली-भर के इस देश भर के
मेरे जैसे न्याय माँगने वाले रोओं के हाथ
काट देते हैं, बेझिझक
इसीलिए कहता हूँ मैं
इन असंख्य भक्तों के आगे
इन असंख्य स्तुतियों के आगे
इन असंख्य पर्वों के आगे
इन असंख्य जलसों के आगे
इन असंख्य वरदान माँगने वालों के आगे
कि मुझे एक ही वरदान चाहिए—
यहाँ जन्म लेते हुए मैं नंगा जनमूँ
मेरा आगमन सिर्फ़—
चमचमाती हुई चट्टान हो चुका है।
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