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शाइर की बीवी का ग़ज़ल गुनगुनाना

shair ki biwi ka ghazal gungunana

ऋतुराज

ऋतुराज

शाइर की बीवी का ग़ज़ल गुनगुनाना

ऋतुराज

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    बग़ल के कमरे में कोई गा रही है

    महनाज़ तुम हो क्या?

    मुन्नी बेग़म तुम्हारी आवाज़ पहचानता हूँ

    आबिदा कैसी हो?

    कोई हैं जो लगातार कई बरसों से गा रही हैं

    जिसे आज वह गुनगुना रही है

    मानो एक ने दूसरे के दर्द की परतें हटा दी हैं

    दूसरे कमरे से मेरे कमरे तक दर्द की एक धारा बह रही है

    मैं धीरे से मुस्कुराता हूँ

    वही शख़्स हूँ मैं जिसके लिए इन सबने ग़ज़ल बनकर

    टीसना शुरू किया है

    मैं इनके दर्द की सेंध में छिपा इनकी कशिश से खेलता हूँ

    ये बार-बार चिमटे से रोटी की तरह दर्द को उलटती-पलटती हैं

    रसोई में जलती लौ में भूनती हैं अपने बेज़ार दिलों को

    ग़ुसलख़ानों की हया को छिपाती हैं

    बिस्तर की दहशत को आँखे बंद किए बर्दाश्त करती हैं

    मैं वो शख़्स हूँ जो दहकते गर्म तवे पर इनकी उँगलियों के

    जलने का मज़ा लेता रहा है

    सुनता रहा है हिरस की छीलती वेदना से भरी इनकी गायकी

    ये बार-बार मेरी गली के घुप्प में आई हैं

    मेरी खिड़की पर दस्तक देकर इन्होंने मुझे आगाह किया है

    कि तुम कितना भी ज़ुल्म और बेरुख़ी से पेश आओ

    लेकिन अपने दर्द को ग़ज़ल की धुन में बदलने का

    हमारा जज़्बा कभी ख़त्म नहीं होगा

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्त्रीवग्ग (पृष्ठ 74)
    • रचनाकार : ऋतुराज
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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