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शहर आ गया

shahr aa gaya

अरविंद चतुर्वेद

अरविंद चतुर्वेद

शहर आ गया

अरविंद चतुर्वेद

और अधिकअरविंद चतुर्वेद

    सारी रात चलने के बाद

    सुबह एक पहर दिन चढ़ा होगा

    जब बस की खिड़की से दिखाई पड़ा

    सड़क के बीचोंबीच

    कुचलकर मरा एक कुत्ता

    मैं समझ गया—आ गया शहर।

    कुत्ते का क्षत-विक्षत शव छितराया हुआ

    और उस पर टायर के साफ़-साफ़ निशान

    नए टायर लगे होंगे उस गाड़ी में

    हमसे आगे निकल गई होगी वह शहर

    एक मूँछवाले ख़ानदानी हकीम का

    पोस्टर दीखा—मर्दानगी के वास्ते

    किनारे की दीवार पर

    आधा फर्लांग लंबी लिखावट थी—

    हाजमा दुरुस्त रखने की रामबाण दवा

    कुछ सूअर लोट रहे थे

    कीचड़भरे एक पोखरनुमा सड़े हुए पानी में

    बस का हॉर्न बजा ज़ोर से

    सड़ी हुई हवा का एक भभका आया खिड़की की ओर से

    सवारियों ने लंबी साँस छोड़ी—

    शहर गया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुंदर चीज़ें शहर के बाहर हैं (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : अरविंद चतुर्वेद
    • प्रकाशन : प्रकाशन संस्थान
    • संस्करण : 2003

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