शाहिद
shahid
तुम इतने डरे हुए क्यों हो शाहिद
क्या तुम इसलिए डर गए कि
कभी अगर दंगा हुआ तो
तुम मारे जाओगे संख्या में कम होने की वजह से
या इसलिए डरे हुए हो कि
कोई रामनिवास मारा जाएगा
उस इलाक़े में अपनी संख्या कम होने की वजह से
बोलो शाहिद क्यों डरे हो?
चलो आओ, मैं तुम्हें सुनाता हूँ एक क़िस्सा
शायद तुम्हारा मन बहल जाए
तो सुनो—
''एक राजा था वह हिंदू था और एक मुसलमान था वह राजा था
ऐसे ही कुछ और समुदाय के लोग थे और उनके अपने राजा थे
और सभी राजा एक दिन मर गए और सभी प्रजा भी मर गई
लेकिन याद राजा को ही किया गया
हिंदू, मुसलमान या किसी समुदाय के लोगों को नहीं
अपने-अपने समुदाय के हमारे-तुम्हारे जैसे लोग दफ़ना दिए गए
न कोई शाहिद रहा और न ही कोई रामनिवास
जो इतिहास बना वह राजा का बना
जो स्मारक बने वे राजा के बने
हम-तुम कहाँ हैं शाहिद वहाँ?
कहाँ हैं वहाँ हमारे बूढ़े माँ-पिता और बच्चे?
जबकि हम उनके लिए ही अपने बच्चे जन्मते रहे हैं?”
तो फिर तुम डरे क्यों हो शाहिद
आओ मैं कोई राजा नहीं हूँ
जैसे तुम शाहिद हो वैसे ही मैं रामनिवास हूँ
मैं हूँ, तुम हो
तुम हो, मैं हूँ और हमारे बाल-बच्चे हैं
तुम्हारी बुनकरी है, तो मेरा बालटा है, छेनी है, हथौड़ा है
यही हैं वो औजार जो दुनिया को सुंदर बनाते हैं
आओ, डरो नहीं शाहिद
आओ इस पत्थर को हम मिलकर आकार दें एक सुंदर बच्चे का
जिसके हाथ में हो फिर से हुनर छेनी का, हथौड़े का, बुनकरी का।
- रचनाकार : अनुज लुगुन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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