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शब्दों को ढूँढ़ती हूँ अँधरे में

shabdon ko DhunDhati hoon andhare mein

चंपा वैद

चंपा वैद

शब्दों को ढूँढ़ती हूँ अँधरे में

चंपा वैद

और अधिकचंपा वैद

    मेरा शरीर मेरी इच्छाओं पर

    प्रतिबंध लगाता रहता है

    उनसे झगड़ता-बहसता

    पूरे चाँद को देख मूड बदल जाता है

    लहरों की तरह भीतर बवंडर मचाता रहता है

    ज़हर में शायद कोई मीठी दहशत है

    जिससे डरती फिर-फिर वही

    बहस की गोली चखती रहती हूँ

    उसी के स्वाद को बनाने के लिए

    शब्दों को ढूँढ़ती हूँ अँधेरे में

    स्रोत :
    • पुस्तक : सन्नाटे के इर्द-गिर्द (पृष्ठ 118)
    • रचनाकार : चंपा वैद
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
    • संस्करण : 1997

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