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शब्द नहीं, एक पूरा देश है

shabd nahin, ek pura desh hai

वीरू सोनकर

वीरू सोनकर

शब्द नहीं, एक पूरा देश है

वीरू सोनकर

और अधिकवीरू सोनकर

    शब्द, शब्द की तरह नहीं आए

    वह आए थोड़ा सकुचाते हुए

    और, मैंने पूछा कैसे हैं आप!

    शब्द जो प्रत्यक्ष थे, स्वतः प्रमाणित थे

    आश्चर्य से भरे हुए, वह दुबारा आए तो अपने कपड़े उतारे हुए

    और, मैंने फिर पूछा मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ

    लौट गए शब्द इस बार आए, तो करुणा से भरे हुए थे

    दुख की छाया उनकी और बढ़ गई थी

    जब मैंने उनसे पूछा नहीं!

    सिर्फ़ बताया, मैं आपके लिए कर ही क्या सकता हूँ

    इस बार शब्द आए तो

    अपमान और ग़ुस्से से जले हुए

    आधे गले मे फँसे, और कुछ हिचकी के साथ बाहर निकले हुए

    उन्हें एक निशब्द और निर्विकार चेहरा मिला

    वे लौट गए!

    शब्द, जो शब्द की तरह नहीं आए थे

    चुभते रहे, एक चुप्पे मनुष्य के भीतर बहुत देर तक

    इस बार वह आए तो मैं कह दूँगा उनसे

    मैं करूँगा कुछ कुछ आपके लिए

    पर शब्द नहीं आए, उनकी आहटें आती रहीं

    पदचाप बजते रहे कानों में।

    कि एक सुबह मैंने देखा!

    एक देश को,

    'शब्द' जिसकी पीठ पर शहरों-गाँवों और मुहल्ले के घरों की तरह उग आए थे

    मैंने देखा, मेरे कपड़े हवा में उड़ गए हैं

    एकदम नग्न लालभभूका चेहरा लिए हुए

    मैं किसी शब्द की तरह नहीं

    किसी उत्तराकुल प्रश्न की तरह!

    एक चुप्पे मनुष्य की ओर दौड़ जाना चाहता था

    उस धूर्त मनुष्य की ओर,

    जिसके बारे में माना जाता है कि उसका चेहरा बुद्ध से मिलता है

    जो अपनी कविता में एक 'निर्दोष व्यक्ति' है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वीरू सोनकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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