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शब्द जहाँ सक्रिय हैं

shabd jahan sakriy hain

धूमिल

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शब्द जहाँ सक्रिय हैं

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    ‘कविता हत्या नहीं करती’—

    आख़िरी झंडी रैंगते हुए बड़े भाई ने कहा—

    ‘ख़ून की रपट के क़ानूनी

    मसलों पर

    ताकि न्याय क़ायम हो।’

    ‘कविता—

    मँझले भाई ने रस्सी बटते हुए

    कहा—जब ज़्यादातर लोग सहमत होने

    लगते हैं सुविधा के किसी ख़ास

    नुक़्ते पर वाज़िब शंकाओं के साथ

    हक़ जैसे एक मामूली शब्द को

    मोर्चे पर बहाल करती है

    सत्य की सुरक्षा हो इसलिए।’

    मगर छोटे भाई ने कोई उत्तर नहीं दिया

    अपनी अँगुलियों पर पिता के नाख़ून

    देखता हुआ वह सहसा उठा

    और अपने हिस्से की रोटी के साथ

    जंगल को चला गया

    कुनबा अवाक्—

    झटके से झूल गई भाषा की लोथ

    पटरा सीवान में

    सन्नाटा फाँसी के तख़्ते-सा खड़ा था

    और हवा—

    हत्या की तरह काँप रही थी

    कहीं कोई उत्तर नहीं

    पीढ़ियों की बहस की सिलसिला

    बीच ही से टूट चुका था और कविता

    आख़िरी आदमी की अँगुली पकड़कर

    भूमिगत हो गई थी

    तब से कितने आरोप दहुराए गए हैं

    गुज़रे दशक की ख़बराई सुर्खियों

    अफ़वाहों से पीली हो चुकी हैं

    मगर लड़ाई में शरीक़

    मेरी अँगुलियों के ख़ून है कि सूखता ही नहीं,

    और अब तो तिहत्तर है आठवें दशक ने

    अभी-अभी दूसरी खूँटी तोड़ी है

    और धीरे-धीरे मनुसा रहा है।

    इस वक़्त अलग से

    मुझे कुछ भी नहीं कहना है

    मैं सिर्फ़ इतना भर जानता हूँ—

    कि नदी के मुहाने पर

    हलचल है और जंगल

    अपना रास्ता बदल रहा हे

    रात के अँधेरे में

    दरारों से निकलते हैं सधे हुए

    चट्टानी पैर और पानी की सतह से

    बिजली के शब्द फूल तोड़ लाते हैं

    जिसके सहारे

    आकाशगंगा के किनारे जगमग

    सितारों के पास

    एक झाड़ी

    जुगनुओं के इशारे भेजनी है

    बत्ती के मद्धिम प्रकाश में

    जब पेड़ किसी खोटे सिक्के-सा

    उछलकर घाटी की गुमसुम हथेली पर

    बेखनक गिरता है—एक तना

    दूसरे तने को चाक़ू फेंकना सिखाता है

    और ठीक उसी वक़्त कविता

    शब्दों पर सान चढ़ाने का काम

    शुरू करती है जब आदमी के

    दर्दीले गले से कोई अगिन-गीत

    फूटता है

    और यह जिसके इशारे पर होता है

    उस अधेड़ दाढ़ी का चेहरा

    हूबहू तीसरे भाई से मिलता है

    मैं सिर्फ़ इतना भर जानता हूँ कि शब्द

    जहाँ सक्रिय हैं, भूख का सिलसिला

    भाईचारे की ज़मीन पर

    छापामार सीटियाँ बजाने लगा है

    और तब ही से भाइयो! मेरे पुरवासियो!

    मेरे पड़ोस की चुनमुन चिरैया

    अपना घोंसला लोहे की जालियों से

    बुनने लगी है और मेरी छप्पर का

    एक नन्हा तिनका

    जंगल की शाखा होने का सपना

    देखने लगा है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल सुनना मुझे (पृष्ठ 68)
    • रचनाकार : धूमिल
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

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