उस दिन मैंने अनायास ही
विनोद में कह दिया :
यह नील परिधान
तुम्हारी सुवर्ण कमनीय देह पर नहीं शोभता।
लेकिन शुभे! अबकी आना मिलने तो
पहनना वही नीली फुलकारी वाली कुर्ती,
तिस पर ओढ़ना अपना कुसुम्भी दुपट्टा
और बालों को खुला न छोड़ना
नही तो ये उच्छृंखल तरयौना खेलेगा उनसे
मेरी लरजती उँगलियाँ कोसेंगी ख़ुद को।
पहनना वही श्यामवर्णीय तरयौना जो गए दिन
अस्सी घाट से लाई थीं तुम।
सुवर्णे! अबकी आना जब
पायल न पहनना
वह रति में बाधा ही पहुँचावेगी।
गुल्फ में पहन लेना श्याम वर्ण का सूत
इधर-उधर की नज़र से बचने के लिए
पहना करे हैं ये आजकल स्त्रियाँ।
दिन भर की चाक-डस्टर धूल से किरकिराते
विशाल पुंडरीक नेत्रों को धुल लेना
गुलाब मिश्रित जल से।
तदुपरांत घी से सजे कज्जल चूर्ण से
करना उन्हें अंजित
निकालना एक पतली-सी कोर,
अहा! यह रात्रि अत्यंत सघन हो उठेगी।
भ्रू-अलकों के मध्य में कुमकुम न लगाना
नही तो इस कृष्ण रात्रि में प्रस्फुटित हो उठेगी
तुम्हारे प्रदीप्त ललाट पर यह ज्योतिर्मय लालिमा।
श्याम वर्ण की लघु बिंदी रखना
भ्रू-लताओं के तनिक ऊपर।
सुवर्ण कंगन न पहनना मणिबंधों में!
डालोगी जब गलबहियाँ तो चुभेगी ग्रीवा में मेरे।
सुनो! यह बूढ़ा आम्रवृक्ष तनिक बुदबुदाता है
अबकी यहाँ न मिलने आना प्रिया!
प्रिये! जब आना तो अपने नाम से
उपसर्ग (सु) पृथक कर देना
यह चंपा लजा जाती है तुमसे।
आना! तनिक रात ठहर जाए तब
छतों पर कूदने की आवाज़ बंद हो जाए जब
आ जाना! रख देना अपने अधर मेरे अधरों पर!
सब कुछ अनकहा पढ़ लूँगा।
चूमकर ग्रीवा पर रख देना एक दंत-पंक्ति
मेरे वक्ष के रोम में फँसाकर अपनी दुबली उँगलियाँ
रख देना अपने स्तनों को मुख पर मेरे
तुम्हारे उभारों में छुप, सोऊँगा
विस्मृत होकर, निश्चिंत!
पहर दो पहर तक।
- रचनाकार : पंकज प्रखर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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