लगता है अभी भी वह साँस मेरे भीतर घूम रही है
वही डूबती आँख मुझे पीछे से ताक रही है
और मेरे क़दम तेज़ हो जाते हैं।
कितनी ही रातें इसी तरह मैंने जगकर बिताईं
उन बीमार, अपाहिज मरते हुए लोगों के साथ
जिनके लोग उन्हें छोड़ कहीं और चले गए,
या जो बग़ल के कमरे में सोते रहे सटकर
और सुबह मुझे रात भर सेवा के बदले पैसे थमाते
दरवाज़े भिड़ा लिए धूप से आँखे बचाते,
और रात इतनी लंबी इतनी घनी अनहोनी होती है
मैंने पहली बार जाना उन मरीज़ों के सिरहाने बैठकर
दर्द से ऐंठते बार-बार कंठ भिगोते
किसी के इंतज़ार में ताकते आख़िरी बूँद तक सूखते
कभी जब वे सो जाते खुले मुँह उनके दाँत चमकते रात में
और तब लगता मैं उनके कितना क़रीब आ गया हूँ;
जिसके माथे पर हाथ धरे तुम रात भर जगते हो
उसके लिए तुम्हीं हो सबसे क़रीबी,
जिसकी देह तुमने धोई-पोंछी उसके लिए तुम्हीं हो
रक्त के सबसे नज़दीक, पुराने अख़बारी काग़ज़-सी देह;
सुबह जब उठकर जाने लगता तब वे इस तरह देखते
जैसे उनका जहाज़ छूट रहा हो—
मुझे वो बुज़ुर्गवार कभी नहीं भूलता जिसके बच्चे विलायत में थे
और जो बिल्कुल अकेला अपने फ्लैट में
जौ के दानों से दिन गिन रहा था,
कोई वैसी बीमारी न थी, बस वह बूढ़ा और अकेला था
तभी मैं उसकी सेवा में आया
और धीरे-धीरे उसने मुझे घेर लिया,
वह कभी रोता न था, न कभी मुझे कुछ करने को कहा
बस रात भर जगा रहता छज्जे में आरामकुर्सी पर बैठा
चाँद उसको प्रिय था और तारे
और लाल कनेल की गंध से भारी हवा
और कई प्याली चाय
वह मेरी गोद में मरा था शांत जैसे कोई फूल झड़ता है—
कोई भी काम मुझे मिल जाता तो यह सब छोड़ देता
पता नहीं कितनी हज़ार रातों से जग रहा हूँ
जरा और मरण के इतने पास,
एक बार तो एक आदमी ने मुझे ऐसे जकड़ लिया था जैसे
वह डूब रहा हो और मुझे भी खींच लेगा भँवर में
लगा जैसे मेरा छिलका उतर रहा हो और मैं भागा;
कई रोज़ मैं बच्चों के स्कूल के बाहर स्कूल टूटने के इंतज़ार में
खड़ा रहता कि ने अपनी कच्ची साँसों से मुझे धो दें—
उफ् मैं पेड़ होता बार-बार पत्तियाँ बदलता
कोई पक्षी अपने पुराने पंख झाड़ता
कोई पहाड़ी नदी सूखती भरती
कई बार में मन में बाँधा कोई और काम खोजूँगा
स्कूल की दरबानी या बच्चों का रिक्शा हाँकूँगा
पर धीरे-धीरे ऐसा समय आता है
जब सारे रास्ते पानी में डूब जाते हैं
जब तुम्हारा सोचा कुछ नहीं होता
बस अंधड़ होता है और सेमल की रूई का फाहा
बस एक ही कोठरी बचती है पूरे शहर में ख़ाली
श्मशान के पास।
- रचनाकार : अरुण कमल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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