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साथ

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ममता बारहठ

और अधिकममता बारहठ

    पेड़ कश्तियाँ हैं :

    किनारों से लगीं

    उठाऊँगी सिर

    तो पेड़ों की जड़ों में हलचल होगी

    कश्तियों की तरह छूटेंगे

    दरख़्त सारे

    और चल पड़ेंगे साथ मेरे

    खोजने तुम्हें

    उस रोज़...

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता बारहठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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