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सारे सिकंदर

sare sikandar

गीत चतुर्वेदी

गीत चतुर्वेदी

सारे सिकंदर

गीत चतुर्वेदी

और अधिकगीत चतुर्वेदी

    सारे सिकंदर घर लौटने से पहले ही मर जाते हैं

    दुनिया का एक हिस्सा हमेशा अनजीता छूट जाता है

    चाहे कितने भी होश में हों, मन का एक हिस्सा अनचित्ता रहता है

    कितना भी प्रेम कर लें, एक शंका उसके समांतर चलती रहती है

    जाते हुए का रिटर्न-टिकट देख लेने के बाद भी मन में हूक मचती है कम से कम एक बार तो ज़रूर ही

    कि जाने के बाद लौट के आने का पल आएगा भी या नहीं

    मैंने ट्रेनों से कभी नहीं पूछा कि तुम अपने सारे मुसाफ़िरों को जानती हो क्या

    पेड़ों से यह नहीं जाना कि वे सारी पत्तियों को उनके फ़र्स्ट-नेम से पुकारते हैं क्या

    मैं जीवन में आए हर एक को ज्ञानना चाहता था

    मैं हवा में पंछियों के परचिह्न खोजता

    अपने पदचिह्नों को अपने से आगे चलता देखता

    तुममें डूबूँगा तो पानी से गीला होऊँगा ना डूबूँगा तो बारिश से गीला होऊँगा

    तुम एक गीले बहाने से अधिक कुछ नहीं

    मैं आसमान जितना प्रेम करता था तुमसे तुम चुटकी-भर

    तुम्हारी चुटकी में पूरा आसमान समा जाता

    दुनिया दो थी तुम्हारे वक्षों जैसी

    दुनिया तीन भी थी तुम्हारी आँखों जैसी

    दुनिया अनगिनत थी तुम्हारे ख़यालों जैसी

    मैं अकेला था तुम्हारे आँसू के स्वाद जैसा

    मैं अकेला था तुम्हारे माथे पर तिल जैसा

    मैं अकेला ही था

    दुनिया भले अनगिनत थी जिसमें जिया मैं

    हर वह चीज़ नदी थी मेरे लिए जिसमें तुम्हारे होने का नाद था

    फिर भी स्वप्न की घोड़ी मुझसे कभी सधी नहीं

    तुम जो सुख देती हो, उनसे ज़िंदा रहता हूँ

    तुम जो दुख देती हो, उनसे कविता करता हूँ

    इतना जिया जीवन, कविता कितनी कम कर पाया

    स्रोत :
    • रचनाकार : गीत चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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