हे मित्र चातक, याचना की यह दीनता दूर हो, व्यर्थ का आडम्बर
करने वाला यह बादल सुखपूर्वक चला जाए। कौन कंजूस याचकों को
पोसेगा? वर्षा-काल में पानी के भार से थके हुए बादल एकत्र होकर स्वयं
ही तुम्हारे लिए सैकड़ों धाराओं में तृप्त करने वाली वृष्टि कर देंगे।
तिनके खाने वाले हम हरिणों को व्याघ्र शत्रुता के बिना ही वनों में
मार डालते हैं। स्वच्छंद खेलते और दौड़ते हुए हमें शिकारी प्रतिदिन पकड़
लेते हैं। झाड़ियों के गड्ढों में होने वाली दावाग्नि से हमें सदा ही भय बना
रहता है। राजन्, एक हरिण-शिशु की रक्षा करते हुए हमारे झुंड को आप
कैसे भूल गए?
प्रत्येक दिशा में विद्वान् तुम्हारे कंठ-स्वर की माधुरी की प्रशंसा करते
हैं। तुम्हें वसंत का आभूषण कहते हैं। सुखी लोग तुममें निःस्वार्थ मित्र के
दर्शन करते हैं। हे कोकिल, तुम निश्चय ही सबसे अधिक प्रशंसनीय हो!
पक्षियों के समूह में तुम विहार करो। ऐसा धृष्ट कौन होगा जो अपने बच्चों
को त्याग देने की तुम्हारी मलिन कथा को औरों के सामने कहेगा!
पर्वत-शिखरों पर समादृत होने पर भी चंचल झरना नीचे की ओर ही
जाता है। पर्वतों के पार्श्व-भागों में स्थित चट्टानों से टकराकर वह शिथिल
हो जाता है। गुफाओं द्वारा उपभुक्त किए जाने पर वह छोड़ दिया जाता है।
फिर वह किसानों के समूह द्वारा सौ तरह से उपयोग में लाया जाता है;
लोगों द्वारा स्वच्छंदतापूर्वक उसमें अवगाहन किया जाता है। इस प्रकार
क्षीणकाय होकर उसमें कीचड़ ही शेष रह जाता है और हार खाकर वह
खारे समुद्र में चला जाता है।
मंदर-पर्वत पहाड़ों में इंद्र के समान था। मंथन के लिए वह
देवताओं द्वारा घेरा गया। स्वयं विष्णु ने कछुआ बनकर उस डूबते हुए का
उद्धार किया। किंतु देवताओं के अमृत प्राप्त कर लेने पर वह कहीं पर वेग से
छोड़ दिया गया। कठिन परिश्रम से थके-माँदे उस पर्वत को उन्होंने
आश्वासन की भी कोई बात नहीं कही।
प्राणों से भी प्रिय नायक दिनमणि सूर्य जब अस्ताचल को जाता है तब
संताप के आधिक्य से यह गुणवती कमलिनी मूर्छित हो जाती है। उस समय
लोग इसमें बहुत-से दोष देखने लगते हैं, जैसे, इसका चंद्रमा से वैर है,
भौंरों को यह मधु नहीं देती और कुमुदिनी से यह डाह रखती है।
बैल होने पर भी शृंगी शिव का वाहन है, अतः सभी उसके सामने
झुकते हैं। पक्षी होने पर भी विष्णु का वाहन गरुड़ आदर प्राप्त करता है।
हे चूहे, तुम सम्यक् रूप से दाँत वाले क्यों न हुए, क्योंकि गणेश के वाहन
होने पर भी प्रत्येक घर में तुम्हारा ही मर्दन होता है।
इस बिडाल को गृहिणी ने प्रतिदिन दही-मिले अन्न के कौरों से इस
आशा में पाला-पोसा कि वह चावल चुराने वाले चूहों को मारेगा। किंतु
कुछ समय बीतने पर वह दूध-दही चोरी से खाकर सुखपूर्वक रहने लगा,
और अब वह न चूहों को मारता है और न झाड़ से मारे जाने पर घर से ही
जाता है।
सृष्टि के आदि से संसार की धुरा को चलाते हुए तुम उदय-अस्त होते
और बार-बार (दक्षिणायन और उत्तरायण) दो अयनों को पार करते हो। हे
सूर्य, इस गर्मी के शांत होने पर तुम विश्वस्त होकर कब विश्राम करोगे!
सज्जनों का यह प्रायः निश्चित अधिकार होता है कि वे परोपकार में कष्टपूर्वक
लगे रहकर कभी विश्राम नहीं लेते।
तारागणों से भी जो अभिभूत नहीं हुआ, उस अचल ध्रुव तारे को हम
नमस्कार करते हैं; विख्यात अगस्त्य तारा भी वंदनीय है, जो जल को स्वच्छ
करने में निपुण है; और हे त्रिशंकु. प्रसिद्ध अनुभवों के घर आकाश में रहने वाले
तुम्हें भी नमस्कार है, जो (विश्वामित्र) मुनि की प्रगल्भता से विस्मित होने पर
भी लज्जा को छोड़ चुके हो।
कुत्ते के ये दोनों बच्चे परस्पर गला पकड़ते हैं, लुढ़कते हैं, ज़मीन
पर गिरकर उठते हैं, पकड़कर खींचते हैं, छोटे-छोटे दाँतों से कानों को काटते
हैं, और दौड़-दौड़कर ख़ूब प्रहार करते हैं, किंतु यह उनका युद्ध नहीं है,
बल्कि प्रेम-प्रदर्शन का क्रम है।
तुम्हारा आधा अंग तो नारीमय है, सिर पर तुमने गंगा धारण कर रखी
है, मुनि-पत्नियों को तुमने आकर्षित किया और बेबस होकर मोहिनी के साथ
ज़बरदस्ती की। इन सब बातों की उपेक्षा करके तुम्हें कामदेव का विजेता
कहा जाता है। इसमें आश्चर्य क्या है? यह कामदेव तो अंगहीन ठहरा और
तुम हो अधीश्वर, जब कि लोग तो जड़बुद्धि हैं ही।
- पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 533)
- रचनाकार : महालिंग शास्त्री
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 1956
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.