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संदर्शन

sandarshan

अनुवाद : रापर्ति सूर्यनारायण

शिवशंकर स्वामी

और अधिकशिवशंकर स्वामी

    1

    हे सीमंतिनि! तुम्हें देखकर मानस भू अति भाती है।

    सर्वलोक गंभीरता तथा महिताभा सरसाती है।

    साथ उल्लसविनम्रता भी चकित नयन के कोनों की

    विमल भाव-संश्लिष्ट हुए तब जगती है रस खानों की॥

    2

    तावक भूरि विभा परिवृत तन विपुल क्षौम अति सुंदर था।

    मद दंतावल यान तथा ही कंकण का अति मृदु सुर था।

    मेरी स्मृति के अनंत पथ में ले सम्मदयुत सुमधुरता

    करते हैं संचार निरंतर दिखा नर्तकीय चतुरता॥

    3

    वदन बिंब कल्यांबुज प्रतिभट, प्रकृति सिद्ध सुंदरता से

    सप्रभाव हो! हे शुभ तन! जब उदित हुआ तो ममता से

    मेरे उर की सुस्थिर पीड़ा रूपी निशीथिनी भागी

    जलद नयन के तरल मार्ग से आभा फैली मन रागी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक तेलुगु कविता (प्रथम भाग)
    • रचनाकार : शिवशंकर स्वामी
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश साहित्य अकादमी
    • संस्करण : 1969

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