संदर्भहीन बारिश
sandarbhhin barish
...बारिश...बारिश...बारिश
इस सुनसान बारिश का कोई नाम नहीं है
और न उस आवाज़ का ही
जो घास पर पड़ती हुई बूँदों से
पैदा होती है
सिवा इसके कि मुझे महसूस होता है
कि इस आवाज़ को मैं
आजीवन सुनता रहूँगा
और इसमें कभी कोई फ़र्क़ नहीं पैदा होगा।
हज़ारों खिड़कियों पर
(लोग हाथ पर हाथ धरे
दिन डूबने का इंतज़ार कर रहे हैं
और उन्हें भी लग रहा है
कि आज जो वे हो गए हैं
सचमुच कल भी वे वही थे।
और इसी तरह
लगातार ज़मीन और आसमान को मिलाने वाली
नीरस बारिश होती रहेगी
जिसके बाद कुछ करने को
शेष नहीं रह जाएगा
जिस तरह हरारत की धारा बहते-बहते
एक सपाट संतुलन पर पहुँच जाती है
फिर कुछ भी घटित नहीं होता।
बेशक मैं उन लोगों में से हो गया हूँ
जिनके पास करने को कुछ भी नहीं
सोचने को बहुत है।
एक बार खिड़की पर क़ैद
तुमने और मैंने
सिर्फ़ चिंतन की पोली शहतीरें फेंक कर
खुले आसमान तक
अदृश्य सुरंग बनाने की कोशिश की थी।
जिसके भीतर हम चुपचाप फ़रार हो सकें
और उस सुरंग के रास्ते
सुनसान कमरे में
सुनहरे सफूफ़ की तरह रोशनी आई थी
जिसके आवरण में
तुम समूचे खड़े हो गए थे
तुम्हारे बाल प्लैटिनम की तरह चमक रहे थे
और तुम्हारी आँखें अपरिचित हो गई थीं।
मैंने पूछा था : तुम कहाँ हो?
तुमने कहा : मैं इतिहास के बाहर चला गया हूँ।
फिर हमने
इस घटना का कभी ज़िक्र नहीं किया।
लेकिन मैं उन लोगों में से हो गया हूँ
जिनके पास सोचने को बहुत है।
करने को कुछ नहीं
और तब से मैंने
न जाने कितनी बातों के टुकड़े सोच डाले हैं
और हर सोची हुई बात
सोख़्ते में दबी हुई
सूखी और नाज़ुक पत्ती की तरह हो गई है
जिसकी दिन-ब-दिन साफ़ दिखती हुई रगों पर
इतिहास के बाहर से
सुनहरी रोशनी का सफूफ़ गिरता है।
... बारिश...बारिश...बारिश
मैं फिर उसी कगार पर वापस आता हूँ
और खिड़की के पार
मटमैले आसमान की ओर देखता हूँ
जिसमें बादल इतने सपाट हैं
कि उनके होने का पता ही नहीं चलता
सिर्फ़ संदिग्ध-सी बूँदें बरस रही हैं
और पड़ोस की छत से
धार गिरने की आवाज़ आती है।
और यह सारा शहर
अनिवार्य बारिश में इस तरह भीग रहा है
जिस तरह जानवर भीगते हैं।
- पुस्तक : मछलीघर (पृष्ठ 23)
- रचनाकार : विजय देव नारायण साही
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 1995
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.