Font by Mehr Nastaliq Web

संदर्भहीन बारिश

sandarbhhin barish

विजय देव नारायण साही

विजय देव नारायण साही

संदर्भहीन बारिश

विजय देव नारायण साही

और अधिकविजय देव नारायण साही

    ...बारिश...बारिश...बारिश

    इस सुनसान बारिश का कोई नाम नहीं है

    और उस आवाज़ का ही

    जो घास पर पड़ती हुई बूँदों से

    पैदा होती है

    सिवा इसके कि मुझे महसूस होता है

    कि इस आवाज़ को मैं

    आजीवन सुनता रहूँगा

    और इसमें कभी कोई फ़र्क़ नहीं पैदा होगा।

    हज़ारों खिड़कियों पर

    (लोग हाथ पर हाथ धरे

    दिन डूबने का इंतज़ार कर रहे हैं

    और उन्हें भी लग रहा है

    कि आज जो वे हो गए हैं

    सचमुच कल भी वे वही थे।

    और इसी तरह

    लगातार ज़मीन और आसमान को मिलाने वाली

    नीरस बारिश होती रहेगी

    जिसके बाद कुछ करने को

    शेष नहीं रह जाएगा

    जिस तरह हरारत की धारा बहते-बहते

    एक सपाट संतुलन पर पहुँच जाती है

    फिर कुछ भी घटित नहीं होता।

    बेशक मैं उन लोगों में से हो गया हूँ

    जिनके पास करने को कुछ भी नहीं

    सोचने को बहुत है।

    एक बार खिड़की पर क़ैद

    तुमने और मैंने

    सिर्फ़ चिंतन की पोली शहतीरें फेंक कर

    खुले आसमान तक

    अदृश्य सुरंग बनाने की कोशिश की थी।

    जिसके भीतर हम चुपचाप फ़रार हो सकें

    और उस सुरंग के रास्ते

    सुनसान कमरे में

    सुनहरे सफूफ़ की तरह रोशनी आई थी

    जिसके आवरण में

    तुम समूचे खड़े हो गए थे

    तुम्हारे बाल प्लैटिनम की तरह चमक रहे थे

    और तुम्हारी आँखें अपरिचित हो गई थीं।

    मैंने पूछा था : तुम कहाँ हो?

    तुमने कहा : मैं इतिहास के बाहर चला गया हूँ।

    फिर हमने

    इस घटना का कभी ज़िक्र नहीं किया।

    लेकिन मैं उन लोगों में से हो गया हूँ

    जिनके पास सोचने को बहुत है।

    करने को कुछ नहीं

    और तब से मैंने

    जाने कितनी बातों के टुकड़े सोच डाले हैं

    और हर सोची हुई बात

    सोख़्ते में दबी हुई

    सूखी और नाज़ुक पत्ती की तरह हो गई है

    जिसकी दिन-ब-दिन साफ़ दिखती हुई रगों पर

    इतिहास के बाहर से

    सुनहरी रोशनी का सफूफ़ गिरता है।

    ... बारिश...बारिश...बारिश

    मैं फिर उसी कगार पर वापस आता हूँ

    और खिड़की के पार

    मटमैले आसमान की ओर देखता हूँ

    जिसमें बादल इतने सपाट हैं

    कि उनके होने का पता ही नहीं चलता

    सिर्फ़ संदिग्ध-सी बूँदें बरस रही हैं

    और पड़ोस की छत से

    धार गिरने की आवाज़ आती है।

    और यह सारा शहर

    अनिवार्य बारिश में इस तरह भीग रहा है

    जिस तरह जानवर भीगते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मछलीघर (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : विजय देव नारायण साही
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1995

    संबंधित विषय

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए