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समतल की संभावना

samtal ki sambhawna

रामजी तिवारी

रामजी तिवारी

समतल की संभावना

रामजी तिवारी

और अधिकरामजी तिवारी

    बतौर सरकारी मुलाज़िम

    रोज़ का परिचय है

    हज़ार रुपए के नोट से,

    फिर भी उसे देखता हूँ

    हसरतों की ओट से।

    परेशान रहता हूँ इतने में

    घर की गाड़ी खींचते हुए,

    ज़रूरतों के पपड़ाए होंठों को सींचते हुए।

    मुल्तवी होती रहती हैं :

    घर की उम्मीदें, आशाएँ

    माथे पर बल बनकर तैरती हैं

    बच्चों के भविष्य की योजनाएँ।

    हर महीने में लगता है

    जैसे कुछ कम रह गया,

    तमाम अधूरी हसरतों का

    जैसे कुछ ग़म रह गया।

    तो फिर मेरे ऑफ़िस का

    दैनिक वेतनभोगी ‘लल्लन’

    कैसे अपना घर चलाता है,

    वह जो तीस दिन में

    सिर्फ़ चार बड़ा गांधी कमाता है।

    क्या उसके माँ-बाप बीमार नहीं पड़ते...?

    उसके बच्चे आख़िर कहाँ हैं पढ़ते...?

    किस तहख़ाने में वह जमा करता है सपनों को,

    किस तरह समझाता है वह अपनों को।

    यहाँ मेरे तीस हज़ार तो

    बीस तारीख़ को ही बोलने लगते हैं सलाम,

    फिर वह अपने चार हज़ार में

    कितने दिन करता होगा आराम।

    मैं सोचता हूँ उसके बारे में

    कि चार हज़ार में

    कैसे कटता होगा उसका महीना,

    क्या वह भी सोचता होगा

    कि तीस हज़ार में भी यह आदमी

    क्यों रहता है पसीना-पसीना।

    या कि जैसे मेरे महीने

    जान गए हैं तीस की सवारी,

    उसके महीनों को भी चल गया है पता

    कि यही है क़िस्मत हमारी।

    क्या हम कभी सकेंगे

    इस दुनिया में एक तल पर,

    क्या पट सकेगा हमारे बीच

    छब्बीस मंज़िलों का भारी-भरकम अंतर?

    मैं तो मर ही जाऊँगा यह सोचकर

    कि मुझे तेरह मंज़िल उतरना है,

    उसका क्या होगा यह सोचकर

    कि उसे तेरह मंज़िल चढ़ना है।

    सुनता हूँ कि जो इस देश में सबसे बड़ा है,

    वह पच्चीस हज़ारवीं मंज़िल पर खड़ा है।

    तो क्या उसे भी उतरना होगा इतना नीचे,

    नहीं-नहीं

    जो खड़े हैं पचासवीं या सौवीं मंज़िल पर

    वे ही कहाँ तैयार हैं

    एक भी क़दम खींचने को पीछे।

    क्यों गर्म हो रही है मेरी कनपटी

    ऐसे तो मैं कहीं लड़ जाऊँ,

    है तो यह कविता ही

    लिखूँ... और आगे बढ़ जाऊँ।

    अरे लल्लन...!

    ज़रा इधर तो आना,

    कैशियर बाबू के यहाँ से

    हज़ार रुपए का

    फुटकर तो लाना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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