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सामराज्य

samrajya

सुखविंदर कंबोज

सामराज्य, तुम्हारी अनंत कारों के समंदर में से

मुझे फ़िलस्तीनी वीरों का ख़ून जलता दिखता है

तुम्हारी मख़मली घास की मुलायम विशालता में

मुझे लातिनी अमेरिकी बच्चों की आहें सुनाई देती हैं।

तुम भी कमाल हो, प्यारे सामराज्य

तुम एक जाल हो सामराज्य

जो भी तुम्हारे सुनहरी जाल में फँसा

वह उम्र लगाकर भी

तुम्हारे मौरगेज बैंकों और क्रेडिट कार्डों में से

अपना पल्लू छुड़ा नहीं पाया।

तुम्हारी गगन चूमती इमारतें

और कंप्यूटर कल्चर में से

मुझे तीसरी दुनिया के बच्चों का

सहमा-सिकुड़ा भविष्य मिला है।

यह तुम्हारे टीलों-टिब्बों की रेत

तुम्हारी कुँवारी मौसम से अटा आकाश

अब मुझे खींचेगा नहीं

चूँकि मैं जान गया हूँ

कि मेरी बूढ़ी माँ की ऐनक

तुम्हारी रंगीन क़र्ज़ की किस्तों के

गौगल्ज़ ने खा डाली

कि मेरे फ़िलस्तीनी भाई को

तुम्हारे कारण ही मिल सका मातृभूमि का देश

कि तुम्हारे टैंकों की बारूदी भूख

उसी क्षेत्र में जलती रही सदा।

और सामराज्य

कहाँ है तुम्हारा यह कुंवारेपन का समंदर

और अंतहीन दोस्ती का दरिया

अति संपन्नता की धरती

किसी और के लिए बने तो बने

लेकिन ब्रेकफ़ास्ट की ट्रे

अंगोला की नीति से ही क्यों शुरू होती है

एल्सेलबार्डर में मर गए

पति की लाश खोजती

विधवा के रुदन से ही

क्यों शुरू होता है तुम्हारा दिन?

और सामराज्य

ये दक्षिणी अमेरिका के लोग

किस मिट्टी के बने हैं

भला लेबनान में फँसें-बसे

बंदियों की आवाज़

तुम्हारा लंच क्यों नहीं बनती

जबकि डैनालोफ़ की मास्को से

छूटी चीख़े, तुम्हारे इतिहास का दर्द बनी हैं।

अरे कमाल हो तुम

दुनिया की दादागीरी का ठेका लेकर

समझने लगे हो कि तुम्हारे डिनर पर

बारवीक्यू चिकन में से ही

अब शुरू होगी नई विश्व-व्यवस्था

कि तुम जिस भी पीठ से हाथ हटाओगे

वह देश ग्लोब के मेरे नक़्शे से समाप्त हो जाएगा

कि जिसकी ओर तनिक गहरी आँख डालोगे

वह मुल्क तुम्हारे पाँवों पर कुत्ते-सा

बिछ जाएगा

कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा-कोष

तुम्हारी अंतिम धमकी है

तुम्हारी इराक में दिखाई अचूक लड़ाई

जंगी मशीनों ने जीत ली है।

लेकिन कपटी, तुम भूल चुके

मास्को एक व्यवस्था नहीं

मॉडल के फ़ेल होने का नाम है

कि धरती पर कुछ भी

समाप्त नहीं होता पूरी तरह।

मार्क्स अभी मरा नहीं

कि श्रम पर लूट अभी जारी है

कि तुम्हारे दुखी किए

लोगों का क़ाफ़िला

दिन-प्रतिदन तंग हो रहा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 385)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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