समकालीन हूँ मैं आपका
अगर मैं गोष्ठी में बुलाऊँ
तो कभी आइएगा
कभी मत आइएगा
आ-आके आने से रह जाइएगा
कभी आते-आते रह जाइएगा
बिलम जाइएगा
पर आई.पी.एस. की बीवी के जन्मदिन पर
ज़रूर जाइएगा
उसका आटा पिसवाइएगा
उसका धान चलवाइएगा
उसकी साहित्यिक फ़सल की रोपनी में
गीत ज़रूर गाइएगा
किसी भी तरह पहुँच जाइएगा
भले ही गिरते-भहराते जाइएगा
आई.पी.एस. की बीवी न सही
तो बी.डी.ओ. की साली को ही साहित्यकार
बनवाने पहुँच जाइएगा
अगर किसी बॉम्बे के तस्कर के कविता-संकलन का विमोचन हो
तो उसमें तो ज़रूर जाइएगा
पर मेरी गोष्ठी में आने से कन्नी काट जाइएगा
लाल दरवाज़ा नहीं तो छोटा दरवाज़ा
बड़ा महल नहीं तो साहेब की
कोठी ही सही
शक्ति विकेंद्रित जनतंत्र ने बनाए हैं
सत्ता सुख पाने के अनेक छोटे-छोटे स्थान
इन स्थानों पर जा, हे मेरे समकालीन
सत्ता सुख पाइएगा
सीधे छुट्टी न मिले तो मेडिकल लेकर जाइएगा
जब कहीं भी ऐसा कुछ न हो रहा हो तो
मन मार
मेरी गोष्ठी में आ जाइएगा
और आकर मुझे लोकल कॉनवेयन्स्
के लिए हड़काइएगा
हो! मेरे समकालीन।
- पुस्तक : खुदाई में हिंसा (पृष्ठ 142)
- रचनाकार : बद्री नारायण
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2010
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