संबल
sambal
केवल दो शहरों में मिल सकते थे हम
एक मेरे शहर से पूर्व
एक मेरे शहर से पश्चिम
तुम्हारा शहर इतना दूर है
उसके आस-पास भी जाने में असमर्थ हूँ मैं
और अपने शहर में
मैं खिड़की या छत से देखकर
तुम्हारी राह ताकने की
कोरी कल्पना भी नहीं कर सकती
यूँ करो
या तो तुम पहाड़ों जितने ऊँचे बन जाओ
या मेरे मन को इतना संबल दो
कि मैं पहाड़ों जितनी ऊँची बन सकूँ
यह प्रतीक्षा
अपने आप
ढह जाएगी
एक दिन
हम दोनों आसानी से एक दूसरे को देख पाएँगे
बादलों के ज़रिए एक दूसरे से मिल पाएँगे।
- रचनाकार : स्मृति प्रशा
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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