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समय की धार में पिता

samay kii dhar me pita

धीरेंद्र 'धवल'

धीरेंद्र 'धवल'

समय की धार में पिता

धीरेंद्र 'धवल'

और अधिकधीरेंद्र 'धवल'

    इक्कीसवीं सदी में

    बीसवीं सदी का एक युवक

    बता रहा था अपने पिता की कहानी

    बता रहा था

    हम लोग हिम्मत ही नहीं जुटा पाते थे

    पिता के सामने

    कह सकने को अपने मन की कोई बात

    कभी कह ही नहीं पाए

    साइंस नहीं सोशल साइंस पढ़ेंगे

    मैं करता हूँ किसी से प्रेम

    मुझे अभी नहीं करना विवाह

    बावजूद इसके पिता

    पिता ही होते

    वह घर में बोझ नहीं होते

    उनकी उपस्थिति ही

    घर की किलकारी होती

    घर में अनुभव का टकसाल

    भीगी आँखों से बताया

    पहली बार जब वह छोड़ा था घर

    पिता स्टेशन तक आए थे

    उनका चेहरा उदास था और आँखें गीली

    वह गले मिलना चाहता था

    जैसे मिल लेता है उनका बेटा

    पिता का स्पर्श मेरे लिए तभी संभव था

    जब उनके चरण छूते थे मेरे हाथ

    और उनका हाथ होता था मेरे पीठ पर

    बीसवीं सदी के पुत्र

    अब जब बन चुके हैं पिता

    अपने पुत्रों पर बन रहें हैं बोझ

    इक्कीसवीं सदी के बेटे

    डॉलर और रुपए की बहस में

    छोड़ रहें हैं अपना गाँव, अपना घर

    पिता की स्मृतियों और वस्तुओं को

    पुरातनता का प्रतीक बताते हुए

    पिता की ही तरह उन्हें कर रहें हैं बेदख़ल

    स्रोत :
    • रचनाकार : धीरेंद्र 'धवल'
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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