एक बूढ़ा ग़रीब व्यक्ति
चप्पल नहीं पहने हुए है जितना ग़रीब
कैरी के रंग का कुर्ता पहने है
कैरी के रंग की ही पुतलियाँ हैं उसकी
कैरी के रंग की फुंसी है नाक पर
बहुत बूढ़ा ग़रीब कच्ची कैरी की तरह कठोर होता है
वह मेरे पास समय पूछने के मन से
रुकता हुआ मेरे पास आता है
मैं डरता हुआ झेंप जाता हूँ
इतना ग़रीब व्यक्ति
मैं उसके व्यक्ति होने की विवशता से
बहुत डरता हूँ कि यह विवशता
मेरे शब्दकोश में गंदगी है
बहुत डरा हुआ नौजवान कवि हूँ
इतना ग़रीब मैं भी हूँ
मेरी तरह वह भी मेरे झेंप जाने से डरता है
उसकी तरह मैं भी मौन को अपनी
श्रेष्ठतम पूँजी समझता हूँ
वह बहुत थका हुआ दिखता है
दिखाई देने में वह चलती-फिरती थकान के अंदर
पतली-खोखली हड्डियाँ हैं
सूख रहे ख़ून में थोड़ा बहुत मांस
थकान चलती हुई मेरे पास आई तो डर गया था
नौजवान कवि होने की हैसियत से
अपने डर को नाना प्रकार से सही क़रार दूँगा
अपने डर को अपने सामने नहीं रख सकता
इतनी बड़ी थाली नहीं है मेरे घर में
इतना ग़रीब मैं भी हूँ
यही दोहराता रहूँगा
अपने मन में अपने विरुद्ध नौजवान कवि
हर एक को एक बूढ़ा ग़रीब व्यक्ति ही समझते हैं
झेंप जाते हैं
डरते हैं
विचलित होते हैं
कवि लिखते हैं विचलन पर कविता
और मैं लिखता हूँ विचलन से कोसों दूर वह स्थान
जहाँ तक की यात्रा विचलन से न हुई
वहाँ कोई व्यक्ति विचलित नहीं होता
वहाँ बह रहे ख़ून से किसी को ऐतराज़ नहीं
वहाँ की सरकार मनुष्यों को
दिन-रात अपने मल से नहलाती है
वहाँ के लोग आपस में विवाद के अतिरिक्त
आपस में बने रहने का कोई और कारण
नहीं खोज पाए हैं
वहाँ हमारे कवि चले गए
तो विचलन का दौरा पड़ जाएगा
वहाँ के लोग तो आदी हैं
और आदिवासी हैं उन लोगों से भी कोसों दूर
वह स्थान मैंने इस कविता में दिखाया
तो हमारे पाठकों को
झेंप का लकवा मार जाएगा
जैसे मुझे मार गया था
उस बहुत बूढ़े ग़रीब व्यक्ति के
समय पूछने पर
समय अच्छा तो बिल्कुल भी नहीं है
मुझे और यात्राओं पर जाने की आवश्यकता है
हम सब एक ही स्थान से
दूसरे स्थानों पर लिखते हुए निर्दयी लगते हैं
निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं
पाठक और उनके प्रिय कवि
सबसे उदास कविता लिखने का
सबसे उदास कविता पढ़ने का
यह ओछा जीवन व्यतीत करने की उदासी से अनभिज्ञ
दूसरे स्थानों के लोग मूँछ रखने से डर रहे हैं
एक व्यक्ति आवेश में आता है
नालंदा को आग लगा देता है
इतिहास नहीं जलाया जाता
कलाएँ नहीं ध्वस्त होती हैं
केवल मनुष्य कमज़ोर होता है
केवल भुखमरी को बल मिलता है
खाड़ी देशों की लड़कियाँ टेलीविज़न पर चीखती हैं
एक देश अपने नागरिकों को
खाने में सिर्फ़ नमक देता है
नमक खा-खा कर औरतें भी नमक हो गई हैं
एक अतिरिक्त खाने की प्लेट पर
एक अतिरिक्त किसी की चुटकी में
एक अतिरिक्त किसी के शर्बत में
एक बहुत ही खारा देश हैं औरतें
और अपने उस देश से
हम नमक चुराते रहे अपने खाने के लिए
अपना झूठा दुःख रोते रहे
व्यर्थ रहा वह देश और उसके सच्चे नागरिकों का
टेलीविज़न पर आ-आकर बिलखना
टेलीविज़न बंद होने पर दिखता है
कमरे से निकलता हुआ
एक व्यक्ति जो स्कूल के बच्चों को भून देता है
एक व्यक्ति जो हर दूसरे से घृणा करता है
एक व्यक्ति जो अपने धर्म का पक्ष लेते हुए
लड़कियों को रंडी कहता है और गौरवान्वित है
एक व्यक्ति जो हर रविवार को चर्च की परंपरा अनुसार
रेडियो पर इन दिनों को देश के स्वर्णिम दिनों में गिनता है
देश में कलाकारों से लोग पूछते हैं
कितने में बिकोगी
क्या दाम है तुम्हारा
कितनों से मरवा के आयी हो
और यह सब देखता हुआ देश झेंपा हुआ नहीं है
ख़ुशहाल है और समृद्धि को अग्रसर भी
ख़ुशहाली के इंडेक्स में कोई दम नहीं है
दुनिया के सभी पत्रकार वेश्याओं के बेटी-बेटे हैं
और हम सभी इस कविता को लिखने-पढ़ने के लिए
जासूसी संस्थाओं से भाड़े पर बंधुआ मजदूर हैं गिरवी हैं टट्टू हैं
एक बूढ़ा बहुत ग़रीब व्यक्ति
ટાઈમ શુ થયુ છે
नहीं कहता है
वह इशारा करते हुए क़रीब आता रहता है
जैसे देश के क़रीब आता हुआ दिख रहा है इतिहास
इशारा करते हुए कि मैं और वह एक दूसरे के काम आ सकते हैं
झेंपने वाले कवि अपनी कविता में
इतिहास के विद्यार्थी नहीं बन पाते
बीच वाली उँगली दिखाते हुए फ़क यू कहने के आदी हैं
और इस पृष्ठ के ठीक उलटे भाग पर आदिवासी हैं
पर कवियों के अंदर ग़ुस्सा है
और झुलसा देने वाली धूप में मोर्चा है
(पावर्ड बाय इंस्टाग्राम)
देश जहाँ नहीं हैं
उस स्थान से लिखने वाले
देश पर अच्छा लिख रहे हैं
सब सच्चा-सच्चा लिख रहे हैं दुःख
सब बचा लेंगे देश को
वह जिसका नक़्शा भर पाना भूगोल की कक्षा में कठिन था
उस पर आज न ही मूतने वाले कम हैं
न ही मूता हुआ पोंछने वाले
चाटने वाले तो देश के नौजवान कवियों की फ़ेहरिस्त में
सबसे ऊपर हैं अपनी सबसे उदास कविता काँख में लिए
अपने ट्विटर पर
अपने फ़ेसबुक पर
वर्चुअल काँख में दबाए हुए हैं संविधान की वर्चुअल कॉपी
जिसे रेफ़रेंस के लिए रखा है
पढ़ा नहीं है
आख़िर रेफ़रेंस कौन पढ़ता है
बूढ़ा ग़रीब व्यक्ति केवल समय जानना चाहता है क्या हुआ
नौजवान समय का भरपूर उपयोग करना चाहते हैं
देश इस समय से बच निकलना चाहता है
सरकारें इस समय एक कॉन्फ़्रेंस की तैयारी में जुटी है
बच्चे अपने माता-पिता से समय चाहते हैं
पंखा ऐसी गर्मी के समय में कटी हुई बिजली का शिकार है
बंद पड़ा है इस समय लोगों के दिल तक का रास्ता
पेट से होते हुए क्या जाता
पेट ख़ाली है और इतना सँकरा रास्ता है
कि दूसरी तरफ़ से लौटते हुए
यात्री इस तरफ़ से आने वालों की
हत्या करने में नहीं हिचकिचाते हैं
आज का समय एक ख़ाली पेट है और सँकरा रास्ता है
और टेलीविज़न पर विचलित करने वाले दृश्य
और सड़क पर आते ही किसी को भी न दिखने वाली हिंसा
आज का समय इज़ अ लॉन्ग डे अंडर द सन
उनके लिए जो अपने वातानुकूलित बेडरूम से
कई आंदोलनों का ठेका अपने चौड़े
आठ-सीटर सर पर उठाए हुए हैं
न दिखने वाला एक बहुत ग़रीब बूढ़ा है आज का समय
उसके सरकारी दस्तावेज़ पर उसकी फ़ोटो
सबसे उदास पसीने से साफ़ हो चुकी है
उसका नाम केवल आधा बचा है
वह भी उपनाम है
और सड़क पर चलने वाले दूसरे नौजवान बता रहे हैं
कि चमड़ा सीने का काम है
उसका वह जो चला जाता है तपती धूप में
चप्पल नहीं पहने हुए है जितना ग़रीब बूढ़ा व्यक्ति
देश अपना चमड़ा सीए जा रहा है
पूरे देश को धिक्कार की नज़र से देखता हुआ
आज का नया बन रहा सेवन-स्टार मल्टी-स्टारर मल्टी-बिलिनेयर देश
जैसे देखा जाता है
एक बूढ़ा ग़रीब व्यक्ति
टेलीविज़न पर ग्राउंड ज़ीरो रिपोर्टिंग और
नौजवानों के वर्चुअल ग्राउंड ज़ीरो का मोरल एस्थेटिक
उनके दिल को मुलायम बनाए रखने के लिए
सस्ता टिकाऊ बिना एक्सपायरी वाला सनस्क्रीन
बिना ख़र्च किए दाम नौजवानों का इंस्टेंट रिएलिटी चेक
इंस्टेंट रामेन खाते हुए
इंस्टेंट आंदोलन से ब्रेक लेते हुए एक मार्मिक दृश्य
एक बहुत ग़रीब बूढ़ा व्यक्ति मेरे पास केवल समय पूछने आया
मैंने घड़ी में देखा और सामने खड़ा था
जवाब माँगता हुआ एक बहुत ग़रीब बूढ़ा व्यक्ति।
समय।
- रचनाकार : अभिजीत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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