सदियों की चुप्पी टूटने की बात
sadiyon ki chuppi tutne ki baat
सदियों की चुप्पी टूटने की बात
सुनी गई बीसेक बरस पहले
मंत्री, लेखक, संपादक, अफ़सर सबको था इत्मिनान
कह लेने दो इन्हें अपनी व्यथा कथा
रोने-बिसूरने पर थपकिया दो ज़रा
पुरुषों के महफ़ूज़ सत्ता-तंत्रों के बीच
कुछ इस तरह फूलता-फलता रहा स्त्री-विमर्श
नियंत्रित खाद-पानी-हवा के बीच
एक दिन फूट पड़ा रक्तबीज
अपनी नहीं
अब आपकी शौर्यकथा सुनाएँगी स्त्रियाँ
घर दफ़्तर बाज़ार
हर जगह से निकालेंगी
आपकी चालाकियाँ, प्रलोभन और मौक़ापरस्ती
बरसों पहले की चीखें, संताप, ज़रूरतें, महत्वाकांक्षाएँ
या अपनी लुभावनी अदा भी
लोकवृत्त में दरपेश कर देंगी
अब सवाल पूछने के तरीक़े बदल गए हैं
जवाब मेनका, अहिल्या और सूपर्णखा को नहीं
विश्वमित्र, चंद्रमा और लक्ष्मण को देना है।
- रचनाकार : प्रीति चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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