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सड़क और मज़दूर

saDak aur mazdur

मीना प्रजापति

मीना प्रजापति

सड़क और मज़दूर

मीना प्रजापति

और अधिकमीना प्रजापति

    पसीना बहाने, दिहाड़ी कमाने और भूख मिटाने की

    ऊर्जा से बनी सड़क

    आज रोती, बिलखती और असहाय-सी

    न्यायालय के समक्ष खड़ी है

    ही उसे किसी ने झूठी गवाही

    देने के लिए घूस दी

    वह तो बस

    अपने निर्माणकर्ताओं के पक्ष में है

    सड़क के बदन पर

    टूटी चप्पल की बद्दी

    मीलों दूर चलते मज़दूरों का लहू

    भूख से बिल-बिलाते बच्चे

    चिल-चिलाती धूप में सूखते होंठ

    और सूजे पैरों का लालपन सुनकर

    न्यायाधीश ने चकित होकर कहा

    बोलो इतिहास की देवी?

    सड़क फूट-फूटकर रो पड़ी

    अपने जन्मदाताओं की

    तपती पीठ और खाली पेट पर

    पड़ती वर्दी वाली लाठियों की

    गवाही देने लगी

    उन रौंदती सफ़ेद राजनीतिक

    गाड़ियों की कौंध बताने लगी

    जो उन्हें कैमरे के आगे

    रोटी फेंकने आए थे

    मुझे सवारने वालों पर

    एक बीमारी ने उतने गड्ढे नहीं किए

    जितने उनका वोट लेने वालों ने किए

    वह बच्चे के दूध की बोतल

    गर्भ में कुल-बुलाते अजन्मे को लेकर

    तो कोई अपनी माँ की अर्थी लेकर

    अंतिम दर्शन कराने

    एक टाँग पर

    सरपट अपनों की ओर लौट रहे थे

    उन्हें नहीं चाहिए थी

    भीख के समान रोटियाँ

    मेरा मज़दूर सवाभिमानी है

    पसीने की खाता है

    सरकारी चर्बी की तरह

    लचीला नहीं

    न्यायाधीश हुए गंभीर

    पर रास्ता उनके पास भी नहीं

    सड़क आज भी

    मकान मालिक के सताए

    भूख के जलाए

    प्रवासियों को सामान ले जाते देख रही है

    उसका काला तारकोल

    बिछुड़न की आग से

    पिघल गया है

    चलते-चलते चप्पल जो टूट गई तो

    प्लास्टिक की बोतल से पदचाल बनाए

    वही शहरी सड़क जिस पर

    नेताओं के लोकार्पण के बोर्ड लगे थे

    आज वो फिर अपने कर्ताधर्ताओं को

    पुकार रही है

    वह देखो सामने वाला लाल किला भी

    बाहें फैला रहा है

    वह बड़ी इमारतें जो

    अमीरों का ठिकाना हैं

    वे रो-रोकर दरक रही हैं

    सब कामगारों को पुकार रही हैं

    उनके जाने से विकसित सभ्यता भी

    सिसक रही है

    उन्हें रोक लो

    वो जाना नहीं चाहते

    वो कुछ और सड़कें, इमारतें बनाकर

    नया इतिहास रचना चाहते हैं

    बाबू जी, कुर्सी वाले बाबूजी

    उन्हें रोक लो

    वो जाना नहीं चाहते हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीना प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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