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सभ्यता का स्पीड ब्रेकर

sabhyata ka speed brekar

पूनम वासम

पूनम वासम

सभ्यता का स्पीड ब्रेकर

पूनम वासम

और अधिकपूनम वासम

     

    एक

    उनके पैरों की जूतियाँ मीलों चलने के बाद भी मुँह फुला कर नहीं बैठ जातीं
    बल्कि उनके तलवों की कठोरता के भीतर से छालों की तरह उफन आई कोमलता पर  
    थोड़ी देर इतरा लेती हैं 

    दो जोड़ी हरी वर्दी, एक जोड़ी जूता, एक जोड़ी चप्पल, 
    एक शीशी तेल, एक नहाने का साबुन, एक कपड़ा धोने का साबुन, दो सर्फ़ पैकेट,
    एक किलो फल्लीदाना का बोझ उठाते उनके कंधे उचक कर मुस्कुरा देते हैं 

    पहाड़ी नदियाँ दो-चार दिनों में एक बार उनकी
    देह की गंध पाकर बौरा जाती हैं 

    चार बंदूक़ों की आड़ में वह बहाती हैं अपने शरीर का कसैलापन, 
    कपड़ों पर लगे दाग़ डिटर्जेंट पाउडर के साथ उड़ा देती हैं जंगल में 

    धोती सुखाती 
    फिर बनाती हैं बित्ते भर लुंगी के कपड़े से 
    उन दिनों के लिए सुरक्षा-कवच 

    वे सीख गई हैं अच्छी तरह हिसाब लगाना 
    एक लुंगी की लंबाई-चौड़ाई समझने लगी हैं अब

    उनकी उँगलियाँ साड़ी के प्लेट्स 
    उतनी तेज़ी से नहीं बना पाती हैं
    जितनी तेज़ी से दबाती हैं वह बंदूक़ की लिबलिबी (घोड़ा)

    धनुष-बाण, गुलेल उनके इशारों पर दौड़ते हैं
    उनकी हँसी जंगल को बचाती है ठूँठ होने से।

    दो

    उनके भीतर भरा जाता है ग़ुस्से का सिलेंडर 
    उन्हें सिखाया जाता है लड़ना
    व्यवस्था के ख़िलाफ़ 
    सामाजिक अन्याय के ख़िलाफ़ 

    वे लड़ती हैं जी जान से 
    ऊँच-नीच की परवाह किए बिना 

    पर उन्हें कभी नहीं पढ़ाया गया 
    कॉमरेड अनुराधा गांधी की जीवनी वाला पाठ

    किसी साज़िश के तहत उन्हें बंजर बनाया जा रहा है
    वह भूल चुकी है सृष्टि के प्रारंभ की कथा

    उनकी सतर्क भाषा के भीतर वर्जित है
    प्रेम, शादी, बच्चा... जैसे शब्द!

    उनकी देह उन लोगों के लिए उत्सव की तरह है 
    जिनकी पाँच उँगलियों के बीच वे फँसा देना चाहती हैं अपनी पाँच उँगलियाँ 
    किसी सुरक्षित खाँचे का भरम समझकर—

    उन्हें तो यह भी याद नहीं कि उनके कंधे पर जो बंदूक़ टँगी है 
    उसमें असली बारूद है।

    शक होता है देवताओं की नीयत पर
    कोई ईश्वर इतना पक्षपाती कैसे हो सकता है?

    तीन

    उनके नाम से काँपता है जंगल के बाहर का आदमी
    उनके नाम से दर्ज होते हैं 
    थानों में कई-कई ख़ूँख़ार अपराध 

    वसूली से लेकर 
    हत्या तक का मामला
    झीरम घाटी जैसे नरसंहार में भी 
    उनकी बंदूक़ बिना रुके धाँय-धाँय चलती रहती है।

    उनका पता बताने वालों के लिए 
    इनाम घोषित है

    जन-अदालत हो  
    छापामार या जन-मिलिशिया 
    उनके बाज़ुओं के शौर्य से जगमगाता है

    उन्हें देखकर सोचती होंगी गाँव की सारी औरतें 
    औरतों को उनके जैसा ही होना चाहिए

    उन जैसी औरतों के लिए बेहद ज़रूरी होता है इन जैसी औरतों का संग 

    वह जो भी बन जाएँ 
    जो भी हो जाएँ
    उनकी उपेक्षा की पीड़ा पर कोई पुरुष नहीं धरेगा नर्म-मुलायम-ठंडा हाथ

    वह चाहे जितनी हिंसक हो जाएँ 
    चाहे जितनी स्वार्थी 
    नहीं तोड़ पाएँगी लिंग से बने हुए ब्रेकर 

    संसार की सारी भाषाएँ
    एक होकर भी व्यक्त नहीं कर सकतीं उनका दर्द

    उनकी चुप्पी गंभीर विषय के विमर्श का हिस्सा नहीं बन सकती 
    उनके पास ऐसी कोई भाषा ही नहीं 
    कि लिखित में दर्ज करवा सकें अपनी शिकायत

    उनकी गुलेल की कच्ची गोटियों से कुछ नया नहीं होने वाला

    ज़रूरत है
    एक दूसरे के सीने में उतनी आग इकठ्ठा करने की
    कि जितनी काफ़ी हो एक लिंग जलाकर राख करने के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पूनम वासम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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