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रिश्ते

rishte

नीरज नीर

नीरज नीर

रिश्ते

नीरज नीर

बादल का अपना कोई रंग नहीं होता

बादल ओढ़ता है

धरती के दुख़ का रंग

जैसे पिता ओढ़े रखते हैं

परिवार की चिंता

अपने चेहरे पर...

बादल में समाई होती है धरती की महक

जैसे विदा होकर गई बेटी में

घुली रहती है

मायके की गंध।

उम्र भर

उसकी बोली, व्यवहार में झाँकती रहती हैं

माँ-पिता की आँखें…

बादल और धरती में

एक अपरिभाषित रिश्ता होता है

जिसे समझने में सदा विफल रहता है

आकाश,

अपने अपरिमित विस्तार के बाद भी

किसी मूल्यहीन छोटे कोने में

अपना सुख व्यर्थ गँवाकर…

अपरिभाषित रिश्ते

होते हैं,

सहज स्वीकृत रिश्तों की उलझी गाँठों के ऊपर

एक नन्हें ख़ूश्बूदार फूल की तरह...

धरती के दुखों की गहनता में

बदलाव के साथ

बदलते रहते हैं बादलों के

रूप-रंग,

उनकी प्रकृति

उनकी डबडबाई आँखों का कालापन...

प्रेम में स्वानुभूतियाँ

गौण हो जाती हैं

सामने वाले की अनुभूतियों के आगे...

स्रोत :
  • रचनाकार : नीरज नीर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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