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दंगा

danga

अनुवाद : गौरख थोरात

त्रिद्वीपों पर लगाम कसकर सवार होने वाली अरबी शलवारें

गंगा में धोकर डाली सूखने हिंदूभूमि की कर्करेखा पर

फट गईं बदरंग होकर गाते-गाते ठुमरियाँ, ग़ज़लें

मज़बूती से बनाई ऊँची मस्जिदों के गिरहबाज़ गुम्बज़ों का

चक्कर काटकर नर्म-मुलायम होती हिंदुई हवाओं का नहीं कोई मुरीद

हिंदू भूमि के पेट पर शान से खुर जमाए बैठे ईरानी मीनारों को

किया जाए नेस्तनाबूत तो रोकने के लिए कोई शहंशाह नहीं

डिब्बेऽ छातेऽ की मरम्मत से अपने लेहँड़े को पालने वाले

खोखले सीनों में दम घुटने वाले रूहूल क़ुरआन के लिए बैसाखी नहीं है

बहुमत का धुआँ उगलने लगे हिंदू महासागर के द्वीप यदि

हज़ार वर्षों के इतिहास का पोंगा पैठना चाहता है काज़ी-मुल्लाओं की शलवारों

में

गली-कूचे में घूमती मरियल गायों के

केवल हिकरने से ढह जाते हैं

अल्पसंख्य अरबी घोड़े हिनहिनाकर गाँव-गाँव

और ध्वस्त कर तोपख़ाने से दक्खन को

मुहल्ले पक्के गाड़कर बैठा मुसलमान रहता है हज़ खोदते—

सँभालते बचा-खुचा सेव-चिउड़े की झुलसी परात में

उसकी दुकान में अँगार बस दहकती राख

बम्बे के बिना बुझी हुई। पीछे की ध्वस्त दुकान

अभागे आठ शतकों के इतिहास की और सहते हुए झुँझलाहट पंचनामों की और

गुनगुनाते हुए कि नूर हूँ किसी आँख का।

स्रोत :
  • पुस्तक : देखणी (पृष्ठ 39)
  • रचनाकार : भालचंद्र नेमाड़े
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2017

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